अभिषेक, राजकुमार, नासिर और मेहर सिंह दिन भर तो छह सितंबर से बठिंडा [पंजाब] में शुरू होने जा रही नेशनल बाक्सिंग चैंपियनशिप की तैयारी में जुटे रहते हैं, लेकिन थककर रात में सोते हैं, तो ओलंपिक के सपने आते हैं। मेरठ कैंप में अपने पंच पैने कर रहे यूपी के ऐसे ग्यारह बाक्सरों की नजर जाहिरा तौर पर अगले ओलंपिक पर है। पिछले साल नेशनल चैंपियनशिप व इससे पहले जूनियर चैंपियनशिप में कई मेडल जीत चुके अभिषेक हफ्ते भर पहले तक खुली आंखों से भी ओलंपिक का ख्वाब नहीं देखते थे, लेकिन यूपी पुलिस का यह बाक्सर अब आत्मविश्वास के साथ कहता है कि भिवानी का लड़का मैडल ला सकता है, तो हम यूपी वाले क्यों नहीं।
वास्तव में यूपी, बाक्सिंग और अभिषेक बीजिंग इंपैक्ट के प्रतीक भर हैं, अन्यथा शूटर अभिनव बिंद्रा, पहलवान सुशील कुमार तथा बाक्सरों अखिल, जितेंद्र व विजेंद्र ने बीजिंग में जो करिश्मा किया, उसने समूचे खेल परिदृश्य पर गहरी छाप छोड़ी।
लखनऊ साई सेंटर [स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया] के बाक्सिंग कोच डगलस शेफर्ड बताते हैं कि अब तक पढ़ाई-लिखाई में कमजोर बच्चे ही यहां आते थे, जबकि कमजोर बौद्धिक क्षमता का असर खिलाड़ी के प्रदर्शन पर भी पड़ता है। बहरहाल, बीजिंग के सितारों पर जिस तरह धन और शोहरत बरस रही है, उसके बाद खेलों का कैरियर के तौर पर विकास तय है। अब कुशाग्र बुद्धि बच्चे भी खेलों को कैरियर बनायेंगे तो खेलों का स्तर अपने आप सुधरेगा। यही नजरिया पूर्व अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी एवं क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी आरपी सिंह का है, जिन्हें लगता है कि भिवानी के बाक्सरों से प्रेरणा लेकर निर्धन व मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे खेलों में कैरियर बनाने आयेंगे। वह कहते हैं कि पिछले ओलंपिक में शूटिंग में सिल्वर मेडल मिला था, इस बार गोल्ड। इस बार जिन खेलों में कांस्य पदक मिला है, अगली बार उनमें बड़े मेडल आ सकते हैं। आरपी सिंह कहते हैं कि दिमागी तौर पर मजबूत व होशियार बच्चे खेलेंगे, तो आश्चर्य नहीं कि हमने इस बार तीन मेडल जीते हैं, तो कभी हम तीस भी जीतें।
दरअसल, ताजा माहौल की सबसे खास बात यह है कि पहली बार क्रिकेट व हाकी से हटकर बाकी खेलों के लिए भी उत्साह-पूर्ण माहौल बना है। पूर्व राष्ट्रीय क्रिकेट चयनकर्ता आनंद शुक्ल बीजिंग में भारतीय खिलाडि़यों के प्रदर्शन से फूले नहीं समा रहे। उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा खुशी किसी और चीज से नहीं मिल सकती। लड़कों ने दो बातें साबित कर दीं। पहली, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने के लिए जोश और जुनून हो तो सुविधाओं की कमी बाधक नहीं। दूसरी, प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अब यह सरकार व खेल संगठनों की जिम्मेदारी है कि वे प्रतिभाएं तलाशें और उन्हें सुविधाएं देकर तराशें। पूर्व अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी रजनीश मिश्र कहते हैं कि जब एक खिलाड़ी पदक जीतता है, तो उसके साथ वह खेल और पूरा देश ऊपर बढ़ता है। बीजिंग के प्रदर्शन से यही हुआ। कुछ साल पहले लोग तृतीय या चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लालच में क्रिकेट या हाकी खेलते थे, लेकिन ओलंपिक के बाद बच्चे बाकी खेलों में भी कैरियर बनाने निकलेंगे।
खेल अधिकारी अनिल कुमार मानते हैं कि अब शूटिंग, बाक्सिंग व कुश्ती जैसे खेलों में बूम आना तय है। बाक्सिंग कोच संजय मिश्र की बात पर यकीन करें, तो बीजिंग इंपैक्ट ने पिछले एक हफ्ते में केडी सिंह बाबू स्टेडियम की उनकी कोचिंग में प्रशिक्षुओं की संख्या बढ़ा दी है। वह कहते हैं कि सानिया मिर्जा ने क्रिकेट व हाकी से हटकर जिस तरह टेनिस का ग्लैमर बढ़ाया, उसी तरह अब बाक्सिंग, कुश्ती व शूटिंग का भी रुतबा बढ़ेगा।
बाक्सर अभिषेक शाह भी कहते हैं कि बेशक अब बाक्सिंग में भी पैसा और शोहरत के दरवाजे खुल गए हैं। वुशू चाइनीज मार्शल आर्ट के कोच विजेंद्र सिंह कहते हैं कि इस माहौल का सबसे ज्यादा असर मीडिया पर पड़ेगा। वह क्रिकेट के मोहपाश से बाहर निकलेगा, तो उसे दिखेगा कि उसने अब तक कितने खेलों और कितनी प्रतिभाओं को नजरअंदाज कर रखा था। मीडिया बाकी खेल दिखायेगा, तो सरकार भी देखेगी और अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने को लालायित अभिभावक भी।
वास्तव में यूपी, बाक्सिंग और अभिषेक बीजिंग इंपैक्ट के प्रतीक भर हैं, अन्यथा शूटर अभिनव बिंद्रा, पहलवान सुशील कुमार तथा बाक्सरों अखिल, जितेंद्र व विजेंद्र ने बीजिंग में जो करिश्मा किया, उसने समूचे खेल परिदृश्य पर गहरी छाप छोड़ी।
लखनऊ साई सेंटर [स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया] के बाक्सिंग कोच डगलस शेफर्ड बताते हैं कि अब तक पढ़ाई-लिखाई में कमजोर बच्चे ही यहां आते थे, जबकि कमजोर बौद्धिक क्षमता का असर खिलाड़ी के प्रदर्शन पर भी पड़ता है। बहरहाल, बीजिंग के सितारों पर जिस तरह धन और शोहरत बरस रही है, उसके बाद खेलों का कैरियर के तौर पर विकास तय है। अब कुशाग्र बुद्धि बच्चे भी खेलों को कैरियर बनायेंगे तो खेलों का स्तर अपने आप सुधरेगा। यही नजरिया पूर्व अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी एवं क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी आरपी सिंह का है, जिन्हें लगता है कि भिवानी के बाक्सरों से प्रेरणा लेकर निर्धन व मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे खेलों में कैरियर बनाने आयेंगे। वह कहते हैं कि पिछले ओलंपिक में शूटिंग में सिल्वर मेडल मिला था, इस बार गोल्ड। इस बार जिन खेलों में कांस्य पदक मिला है, अगली बार उनमें बड़े मेडल आ सकते हैं। आरपी सिंह कहते हैं कि दिमागी तौर पर मजबूत व होशियार बच्चे खेलेंगे, तो आश्चर्य नहीं कि हमने इस बार तीन मेडल जीते हैं, तो कभी हम तीस भी जीतें।
दरअसल, ताजा माहौल की सबसे खास बात यह है कि पहली बार क्रिकेट व हाकी से हटकर बाकी खेलों के लिए भी उत्साह-पूर्ण माहौल बना है। पूर्व राष्ट्रीय क्रिकेट चयनकर्ता आनंद शुक्ल बीजिंग में भारतीय खिलाडि़यों के प्रदर्शन से फूले नहीं समा रहे। उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा खुशी किसी और चीज से नहीं मिल सकती। लड़कों ने दो बातें साबित कर दीं। पहली, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने के लिए जोश और जुनून हो तो सुविधाओं की कमी बाधक नहीं। दूसरी, प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अब यह सरकार व खेल संगठनों की जिम्मेदारी है कि वे प्रतिभाएं तलाशें और उन्हें सुविधाएं देकर तराशें। पूर्व अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी रजनीश मिश्र कहते हैं कि जब एक खिलाड़ी पदक जीतता है, तो उसके साथ वह खेल और पूरा देश ऊपर बढ़ता है। बीजिंग के प्रदर्शन से यही हुआ। कुछ साल पहले लोग तृतीय या चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लालच में क्रिकेट या हाकी खेलते थे, लेकिन ओलंपिक के बाद बच्चे बाकी खेलों में भी कैरियर बनाने निकलेंगे।
खेल अधिकारी अनिल कुमार मानते हैं कि अब शूटिंग, बाक्सिंग व कुश्ती जैसे खेलों में बूम आना तय है। बाक्सिंग कोच संजय मिश्र की बात पर यकीन करें, तो बीजिंग इंपैक्ट ने पिछले एक हफ्ते में केडी सिंह बाबू स्टेडियम की उनकी कोचिंग में प्रशिक्षुओं की संख्या बढ़ा दी है। वह कहते हैं कि सानिया मिर्जा ने क्रिकेट व हाकी से हटकर जिस तरह टेनिस का ग्लैमर बढ़ाया, उसी तरह अब बाक्सिंग, कुश्ती व शूटिंग का भी रुतबा बढ़ेगा।
बाक्सर अभिषेक शाह भी कहते हैं कि बेशक अब बाक्सिंग में भी पैसा और शोहरत के दरवाजे खुल गए हैं। वुशू चाइनीज मार्शल आर्ट के कोच विजेंद्र सिंह कहते हैं कि इस माहौल का सबसे ज्यादा असर मीडिया पर पड़ेगा। वह क्रिकेट के मोहपाश से बाहर निकलेगा, तो उसे दिखेगा कि उसने अब तक कितने खेलों और कितनी प्रतिभाओं को नजरअंदाज कर रखा था। मीडिया बाकी खेल दिखायेगा, तो सरकार भी देखेगी और अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने को लालायित अभिभावक भी।
(याहू.कॉम)
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