केलंग [हिमाचल,अशोक राणा]।
भारत-पाकिस्तान के रिश्तों की कड़वाहट बेशक आधी सदी गुजरने के बावजूद बरकरार है, लेकिन उन्मुक्त नदियां सरहदों और रिश्तों में खटास की परवाह कहां करती हैं। जीवंत उदाहरण है भारत के एक छोटे से कबायली क्षेत्र से निकलने वाली पौराणिक नदी चिनाब। पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से का खुशबूदार बासमती चावल चिनाब के दम पर ही दुनिया में महक रहा है।
कुछ दिनों पहले हमने उन पाकिस्तानी नदियों के बारे में समाचार छापा था, जिनके पानी से भारत के खेत सींचे जाते हैं। इस बार ब्योरा भारत की एक ऐसी ही नदी का। लेकिन इस मामले में एक पेंच यह है कि करीब एक हजार मील लंबी चिनाब नदी भारत में 380 मील बहने के बाद जम्मू-कश्मीर के अखनूर से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है। यानी हम नदी की इतनी लंबाई का फायदा नहीं ले पा रहे हैं।
दूसरी ओर पाकिस्तान के मुजरावाला के समीप सन् 1920 में निर्मित अप्पर पारी तथा लोअर बारी चिनाब नहर लाहौर व लायलपुर के अलावा पंजाब की दो लाख हेक्टेयर भूमि सींच रही है। लायलपुर चावल की विख्यात किस्म बासमती चिनाब के पानी से ही फल-फूल रही है। पाकिस्तान की दो बड़ी विद्युत परियोजनाएं भी चिनाब पर हैं।
आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुई सिंधु जल संधि ने चिनाब के पानी से उसके उद्गम स्थल भारत को वंचित कर दिया। हिमाचल के कबायली क्षेत्र लाहुल व पांगी किलाड़ से चंद्राभाभा के नाम से बहने वाली चिनाब पाकिस्तान की कृषि के साथ बिजली परियोजनाओं के लिए भी संजीवनी बन चुकी है।
इधर भारत इस क्षेत्र में पानी की समस्या से जूझ रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रितवाड़ में निर्मित जिस सलाल बिजली परियोजना का उद्घाटन किया है, पाकिस्तान की आपत्ति के चलते इस परियोजना को बनने में करीब तीस वर्ष का समय लगा। हालांकि लाहुल-स्पीति में इस नदी पर लगभग एक दर्जन बिजली परियोजनाओं को बनाने की योजना अंतिम चरण में है।
अंतरराष्ट्रीय मामला होने के कारण केंद्रीय जल आयोग के लोग खुलकर बात करने से कतराते हैं, लेकिन नाम न छापने की शर्त पर आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि चिनाब नदी के पानी का औसतन मूल्य साठ हजार क्यूसेक फीट के आसपास रिकार्ड किया गया है।
लाहुल के वयोवृद्ध इतिहासकार छेरिंग दोरजे ने बताया कि लाहुल के बारालाचा दर्रे से निकलने वाली चिनाब नदी का जिक्र पुराणों में भी आया है। पुराणों में इसका नाम अस्किनी है। लाहुल-स्पीति के उपायुक्त सी पाल रासू का कहना है कि सिंधु जल संधि के मुताबिक झेलम, सतलुज और चिनाब नदियों के पानी पर पाकिस्तान का हक है। (याहू.कॉम)
Monday, August 25, 2008
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