मां ने कहा हिम्मत क्यों हारते हो। पहले उसने मेरे कटे हाथों की ठूंठ में रस्सी बांधी, फिर उससे फरसा बांधा और मुझे खेत में उतार दिया। इस तरह वह रोज खेत गोड़ने का अभ्यास कराती। धीरे-धीरे बिना रस्सी बांधे कांख में फरसे का बेंत फंसाकर काम करने की आदत पड़ गई..और अब तो ट्रैक्टर भी चला लेता हूं।
यह है वाराणसी का राम सहाय उर्फ बबलू, जिसकी कोहनी के पास से दोनों हाथ कटे हैं, लेकिन जब वह खेत की कोड़ाई-जुताई करता है, ट्रैक्टर चलाता है तो देखने वाले चकित हो जाते हैं। बबलू कर्मठ है, लेकिन उसकी सफलता में बड़ा हाथ उसकी मां शांति देवी का है। दलित और निर्धन परिवार की उस मां का, जिसने अपने जन्म से विकलांग बेटे को खुद पर दया दिखाने की यातना से बचाकर उसे अपने पैरों पर खड़ा होने का रास्ता दिखाया।
बबलू ने आज अगर नाउम्मीदी और अंधेरे की दुनिया से निकलकर जीने का संकल्प लिया, तो उसके साथ इसका श्रेय उसकी मां को भी है। अब खेती और मेहनत-मजदूरी उसके लिए मुश्किल काम नहीं रहा। दूसरों के लिए वह मिसाल तो बन ही चुका है।
विभिन्न अध्ययनों से भी यह बात सामने आई है कि अक्सर जीवन की दौड़ में आगे वही रहते हैं, जिन्हें सामाजिक, शारीरिक और आर्थिक अड़चनों का सामना करना पड़ता है। सेवापुरी विकास खंड के हाथी गांव में रहनेवाला 25 साल का बबलू जन्म से ही दोनों हाथों से लाचार है।
बनना तो वह शिक्षक चाहता था, लेकिन दलित परिवार में जन्म लेने के कारण एक तो गरीबी हिस्से में मिली, ऊपर से पिता की बीमारी ने हौसला तोड़ दिया। आठवीं पास करते ही बड़े परिवार का जिम्मा उसके सिर पर आ गया। पढ़ाई छोड़कर खेत न होते हुए भी जब उसने किसानी करने का संकल्प लिया, तो मां शांति देवी उसकी मार्गदर्शक बन गई।
बबलू बताता है कि बटाई पर दूसरों के खेत लेता हूं और उसकी जोताई-बोआई कर परिवार की नैया खींचता हूं। काम के लिए वह कछवां और भदोही के कुछ व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से भी संपर्क रखता है। बबलू के साथ एक दुर्योग यह भी जुड़ा है कि उसका दूसरा भाई कमलेश [16 वर्ष] मानसिक रूप से कमजोर है, लिहाजा उसका हाथ बंटानेवाला कोई नहीं। वह अपनी सारी हसरतें छोटी बहन किरन [10 वर्ष] को डाक्टर बनाकर पूरी करना चाहता है।
साहस और लक्ष्य के प्रति संकल्प के चलते विकलांगता उसके लिए अभिशाप नहीं है। बबलू अक्सर इस शेर के साथ लय मिलाता है- हिम्मत बुलंद है अपनी, पत्थर-सी जान रखते हैं। अपने हर इक कदम में हम सौ इंकलाब रखते हैं। (साभार : याहू)
यह है वाराणसी का राम सहाय उर्फ बबलू, जिसकी कोहनी के पास से दोनों हाथ कटे हैं, लेकिन जब वह खेत की कोड़ाई-जुताई करता है, ट्रैक्टर चलाता है तो देखने वाले चकित हो जाते हैं। बबलू कर्मठ है, लेकिन उसकी सफलता में बड़ा हाथ उसकी मां शांति देवी का है। दलित और निर्धन परिवार की उस मां का, जिसने अपने जन्म से विकलांग बेटे को खुद पर दया दिखाने की यातना से बचाकर उसे अपने पैरों पर खड़ा होने का रास्ता दिखाया।
बबलू ने आज अगर नाउम्मीदी और अंधेरे की दुनिया से निकलकर जीने का संकल्प लिया, तो उसके साथ इसका श्रेय उसकी मां को भी है। अब खेती और मेहनत-मजदूरी उसके लिए मुश्किल काम नहीं रहा। दूसरों के लिए वह मिसाल तो बन ही चुका है।
विभिन्न अध्ययनों से भी यह बात सामने आई है कि अक्सर जीवन की दौड़ में आगे वही रहते हैं, जिन्हें सामाजिक, शारीरिक और आर्थिक अड़चनों का सामना करना पड़ता है। सेवापुरी विकास खंड के हाथी गांव में रहनेवाला 25 साल का बबलू जन्म से ही दोनों हाथों से लाचार है।
बनना तो वह शिक्षक चाहता था, लेकिन दलित परिवार में जन्म लेने के कारण एक तो गरीबी हिस्से में मिली, ऊपर से पिता की बीमारी ने हौसला तोड़ दिया। आठवीं पास करते ही बड़े परिवार का जिम्मा उसके सिर पर आ गया। पढ़ाई छोड़कर खेत न होते हुए भी जब उसने किसानी करने का संकल्प लिया, तो मां शांति देवी उसकी मार्गदर्शक बन गई।
बबलू बताता है कि बटाई पर दूसरों के खेत लेता हूं और उसकी जोताई-बोआई कर परिवार की नैया खींचता हूं। काम के लिए वह कछवां और भदोही के कुछ व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से भी संपर्क रखता है। बबलू के साथ एक दुर्योग यह भी जुड़ा है कि उसका दूसरा भाई कमलेश [16 वर्ष] मानसिक रूप से कमजोर है, लिहाजा उसका हाथ बंटानेवाला कोई नहीं। वह अपनी सारी हसरतें छोटी बहन किरन [10 वर्ष] को डाक्टर बनाकर पूरी करना चाहता है।
साहस और लक्ष्य के प्रति संकल्प के चलते विकलांगता उसके लिए अभिशाप नहीं है। बबलू अक्सर इस शेर के साथ लय मिलाता है- हिम्मत बुलंद है अपनी, पत्थर-सी जान रखते हैं। अपने हर इक कदम में हम सौ इंकलाब रखते हैं। (साभार : याहू)
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