Monday, August 25, 2008
साहूकार-मुक्त गॉंव
मराठवाडा ग्रामीण बैंक द्वारा भविष्यकालीन दर्शन...
क्या हम कभी भारत के ग्रामीण लोगों को साहूकारों के पंजों से छुडा सकते हैं\ जवाब है एक जोरदार हॉं ! ! दरअसल यह पहले से ही मनीलेंडर-फ्री विलेज (साहूकार मुक्त गॉंव) (MLFV) में हो रहा है। यह योजना महाराष्ट्र राज्य के नांदेड जिले में मराठवाडा ग्रामीण बैंक (MGB) के पायलट प्रकल्प के तहत कार्य कर रही है। SHG प्रवेश के आधार पर नौ गॉंवों का चुनाव कर लिया गया था। यह योजना अप्रैल 2004 में प्रस्तुत की गई थी।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य निजी तौर पर कर्ज देनेवाली गैर-संस्थात्मक, सूदखोर, शोषणपूर्ण ग्रामीण ऋण यंत्रणा को खत्म करना है। ग्रामीण लोगों को SHGs और MGB द्वारा कर्ज मिल सकता है।
वास्तविकता
बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण की अवधारणा भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सब को कर्ज मिले इस उद्देश्य से सोची गई थी। खास तौर पर गरीब लोगों को, वहनीय शुल्क के साथ, ताकि निजी साहूकारों की मनमानी खत्म की जा सके। 1977 में, ग्रामीण कर्ज प्रणाली को सशक्त करने के लिये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई। इस प्रकार सही मायने में, किसानों और अन्य लोगों का निजी क्षेत्र से कर्ज लेना यदि पूरी तरह खत्म न भी किया गया तो भी, कम करने के लिये यह योजना बनाई गई थी।
लेकिन 28 वर्षों के बाद, जब हम पीछे मुड कर देखते हैं, तो मालूम होता है कि हालात में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। ग्रामीण अभी भी संस्थागत या गैर संस्थात्मक साहूकारों के कर्ज के नीचे पिसते रहते हैं। किसान नियमों की अधिकता के कारण संस्थात्मक कर्ज लेने के लिये तेजी से अपात्र हो रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप वे निजी साहूकारों के पास जाते हैं जो आखिर तक उनका शोषण करते हैं।
अवधारणा
MLFV की अवधारणा सरल है। इस पहल के तहत, SHGsMGB के विस्तार के रूप में काम करती हैं बिलकुल दूर के क्षेत्रों में भी ग्रामीणों से संपर्क करती हैं। बैंकों के ग्रामीणों तक न पहुँच पाने के कारणों में भौतिक सीमाओं का होना भी है। साथ ही छोटे खातों के रखरखाव में ज्यादा खर्च आता है। SHG ग्रामीण अर्थ के लिये बहुत सशक्त, शुल्क प्रभावित फिर भी लोकतांत्रिक और पारदर्शी संरचना प्रस्तुत करती हैं। ये बैंक और किसानों के बीच मध्यस्थ का काम करती है जिस से ग्रामीण ऋण निजी साहूकारों की जगह ले सकता है।
काम का तरीका
MGB ने SHGs को सशक्त बनाने की नीति अपनाई हुई है। पहले इन्होंने SHGs का अपने योगदान से संवर्धन किया। इसके तहत उनके द्वारा SHGs को बढावा देने के लिये, स्वयंसेवकों की सूची बनाने, विशेषत: महिलाओं की, आंतरिक तौर पर ऋण देने के लिये, एक छोटी ऋण सीमा निर्धारित कर दी गई। बाद में, MGBSHGs की यह सीमा बढा देती है, और उन्हें ग्रामीणों की जरूरतों को पूरा करने के लिये बढावा देती है, जब बैंक की औपचारिकताऍं सामान्य तौर पर उन्हें साहूकारों के पास जाने को विवश करती हैं।
MGB, जहॉं बैंक उपलब्ध होते हैं वहॉं लोगों को संस्थात्मक ऋण देने के लिये ग्रामीण ऋण योजना तैयार करती है। यह SHGs के काम का सभा, ओरिएन्टेशन कैंप के जरिये निरंतर निरीक्षण करती है। अनुभवों को बॉंटने के लिये कार्यशाला का प्रबंध करती है और स्वैच्छिक प्रशिक्षण तथा गैर सरकारी संस्थाओं से परिचित कराती है। इस पूरी प्रणाली के दौरान, समयानुसार प्रगति का पुनरावलोकन किया जाता है। इस प्रकार का पहला पुनरावलोकन 17 सितंबर, 2004 में किया गया था। यह एक संमिश्र कार्यशाला थी जिसमें SHGs के सभी नेता, स्थानीय किसान क्लब के स्वयंसेवक, NGOs और सामाजिक यांत्रिकी के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा, चेयरमन संबंधित गॉंवों में सभाऍं लेते हैं ताकि ग्रामीणों से जमीनी स्तर का (वास्तविक) प्रत्युत्तर मिल सके।
सफलता की कहानी
SHGs और एक प्रेरित ग्रामीण स्वयंसेविका, श्रीमती विजया धुरंधरे को धन्यवाद। पायलट प्रकल्प के तहत गॉंवों में से एक गॉंव साठेवाडी ने अपने आप को 18 अक्तूबर, 2004 को साहूकारमुक्त घोषित किया। पूरा गॉंव SHGs में शामिल होता है; कम से कम एक परिवार से एक व्यक्ति SHGs का सदस्य है। 1500 की आबादी वाले इस गॉंव में अब 28 SHGs हैं। उन्होंने अब तक बचत खाते में रू.4,80,000/- (11,000 यूएस डॉलर) का कारोबार किया है। MGB ने SHGs को रू.1 मिलियन (23,000 यूएस डॉलर) से भी ज्यादा धन दिया है। ग्रामीण महिलाऍं और युवा SHGs से स्वैच्छिक रूप में, व्यवसाय के लिये और कृषि संचलन के लिये कर्ज लेते हैं। अब कोई भी आर्थिक जरूरतों के लिये निजी साहूकारों पर निर्भर नहीं है। अब यह एक साहूकार मुक्त गॉंव है।
संभावना
रोजगार, अर्थ व्यवस्था और संसाधनों के मामले में ग्रामीणों को स्वायत्त बनाने के लिये MLFV योजना का विस्तार किया जा सकता है। यह इस प्रकार होगा:
· जिन उत्पादों को उच्च तकनीक और भारी लागत की जरूरत नहीं होती है, उनके उत्पादन और उन्हें बाजार में लाने के लिये अग्रिम व पीछे की ओर कडियॉं स्थापित करना; ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जिनकी ग्रामीण बाजारों में बहुत बडी मांग है और जिनका गॉंवों में ही थोडे से प्रशिक्षण से उत्पादन किया जा सकता है जैसे, कपडा, स्टेशनरी की चीजें, और रोमर्रा के उपयोग की घरेलू वस्तुऍं। एक ही गॉंव या बस्ती की विभिन्न SHGs एक विशेष प्रकार की समूह गतिविधि चला सकती है जिस से कि उन्हें कच्चे माल के लिये और उनकी तैयार चीजों के लिये बाहर की एजन्सी पर निर्भर न रहना पडे।
· गॉंवों में स्व-रोजगार के लिये वोकेशनल प्रशिक्षण देना। उदा.:साठेवाडी के युवाओं और पुरूषों को इस साल गन्ने की फसल उगाने की जरूरत नहीं पडी क्योंकि उनके अपने गॉंव में ही बढी हुई आर्थिक गतिविधियों के कारण रोजगार की उपलब्धता बनी रही।
· आर्थिक परिमाणों तक पहुँचने के लिये SHGs के जरिये सामूहिक खेती को बढावा देना। प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग, विशेषत: पानी और जमीन; जल प्रबंधन और सामूहिक ग्रामीण योजनाके तहत सामाजिक जंगलों की देखभाल।
· सामाजिक अभियांत्रिकी समूहों को ग्रामीण स्वास्थ्य कर्मचारियों को सफाई, स्वास्थ्य और प्राथमिक उपचार के बारे में प्रशिक्षण देने के लिये ज्यादा सहभागियों को शामिल करना।
अवसर
MLFV (साहूकार मुक्त गॉंव) योजना के तहत मुडाव के बहुत सारे अवसर हैं क्योंकि भारत में अब SHG गतिविधि सशक्त हो चुकी है। भारत का नैशनल बैंक फॉर ऍग्रीकल्चर एण्ड रूरल डेवलपमेन्ट (NABARD) काफी सारी एजेन्सियों को बहुत ही अच्छा समर्थन दे रहा है। इस खामोश फिर भी ताकतवर क्रांति में कुछ 3,024 भागीदार शामिल हैं।
आज, परिसूचित व्यावसायिक बैंकों की करीब 60,000 ग्रामीण, सेमी-अर्बन और शहरी शाखाऍं हैं। जिनमें से केवल 35,000 शाखाऍं SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम में प्रत्यक्षरूप से भाग लेती हैं। यदि इन 60,000 शाखाओं ने हिस्सा लिया तो जबरदस्त परिणाम मिलेंगे। भारत में करीब 6,00,000 गॉंव हैं। यदि एक शाखा ने एक वर्ष में एक गॉव को चार साल के लिये गोद ले लिया, सभी 6,00,000 गॉंवों में पहुँच हो सकती है। इस प्रकार भारत के सभी ग्रामीण लोगों को बैंकिंग क्षेत्र के छत्र के नीचे लाया जा सकता है और निजी साहूकारी के श्राप से मुक्त किया जा सकता है।
(साभार : महिंद्रा किसान मित्र)
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