दुनिया का बोझ उठा, बेटे को बनाया सीए
लखनऊ। जिंदगी भर गरीबी का दंश झेलने के बावजूद रज्जाब अली ने हालात के सामने घुटने नहीं टेके। पेशे से कुली रज्जाब ने सारी दुनिया का बोझ उठाने वाले हाथों से अपने बेटे के टूटते सपनों को भी विपरीत परिस्थितियों में सहारा दिया। बेटे ने भी अपने पिता की कुर्बानी का मान रखा और नतीजे में वह तोहफा दिया, जिसे पाकर हर पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो जाए।
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर 55 साल के रज्जाब पिछले 40 साल से कुली का काम कर रहे हैं। वह रेलवे कुली परिषद के कोषाध्यक्ष भी हैं। उनके तीन लड़के और तीन लड़कियां हैं। हर महीने तीन हजार रुपये कमाने वाले रज्जाब ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन स्टेशन पर जब भी पढ़े-लिखे लोगों को देखते तो बस मन में एक ही ख्याल आता कि काश वह भी अपने बच्चों को इस काबिल बना सकते।
रज्जाब भूखे पेट सोये, लेकिन बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं आने दी। उन्होंने बड़े बेटे नूरूद्दीन को ग्रेजुएशन करने के लिए अलीगढ़ भेजा। वहां से उसने चार्टर्ड एकाउटेंट (सीए) में अपना कैरियर बनाना चाहा, लेकिन घर के हालात देख मन मसोस कर रह गया। मगर बेटे के अरमान देखकर रज्जाब ने मन में ठान लिया कि वह उसे सीए बनाकर ही दम लेंगे।
नूरुद्दीन ने भी पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए रात-रात भर मोमबत्ती जलाकर पढ़ाई की। अपनी मेहनत और लगन से उसने सीए की हर परीक्षा पहली बार में ही पास कर ली और सीए बन गया। रज्जाब कहते है कि उनके बेटे ने उनका सपना पूरा कर दिया। पेशे के प्रति ईमानदारी की इससे अच्छी मिसाल और क्या होगी कि बेटे के सीए बन जाने के बाद भी रज्जाब अली ने कुली का काम नहीं छोड़ा है।
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर 55 साल के रज्जाब पिछले 40 साल से कुली का काम कर रहे हैं। वह रेलवे कुली परिषद के कोषाध्यक्ष भी हैं। उनके तीन लड़के और तीन लड़कियां हैं। हर महीने तीन हजार रुपये कमाने वाले रज्जाब ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन स्टेशन पर जब भी पढ़े-लिखे लोगों को देखते तो बस मन में एक ही ख्याल आता कि काश वह भी अपने बच्चों को इस काबिल बना सकते।
रज्जाब भूखे पेट सोये, लेकिन बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं आने दी। उन्होंने बड़े बेटे नूरूद्दीन को ग्रेजुएशन करने के लिए अलीगढ़ भेजा। वहां से उसने चार्टर्ड एकाउटेंट (सीए) में अपना कैरियर बनाना चाहा, लेकिन घर के हालात देख मन मसोस कर रह गया। मगर बेटे के अरमान देखकर रज्जाब ने मन में ठान लिया कि वह उसे सीए बनाकर ही दम लेंगे।
नूरुद्दीन ने भी पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए रात-रात भर मोमबत्ती जलाकर पढ़ाई की। अपनी मेहनत और लगन से उसने सीए की हर परीक्षा पहली बार में ही पास कर ली और सीए बन गया। रज्जाब कहते है कि उनके बेटे ने उनका सपना पूरा कर दिया। पेशे के प्रति ईमानदारी की इससे अच्छी मिसाल और क्या होगी कि बेटे के सीए बन जाने के बाद भी रज्जाब अली ने कुली का काम नहीं छोड़ा है।
Jan 16, 08:५८, साभार:याहू.कॉम
3 comments:
दुनिया की आपाधापी देखकर मन व्याकुल हो जाता है। लगता है कभी-कभी, चारों ओर अंधेरा है। ऐसे में तुम्हारा यह लेख जीने का हौसला देता है कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है।
रज्जाब अली को सलाम. अब बेटे की बारी है सी ऎ बन गया है. पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठाने की.
isi tarah ki sanvednaon ko mai janmanas ke hridyon me jagrit karna chahta hun, aap sabke sahyog ki apeksha rahegi. achha hoga yadi aap bhi kucch iss tarah ke anubhavon ko ujjas ke liye bhejenge......saath hi apne anya mitron ko bhi iska link bhej unhe bhi ise ek abhiyan ki tarah aage badhane ke liye prerit kar sakte hain..
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