अभी भी नहीं रुक रहे बाल विवाह
बाल विवाह रोकने की सरकारी कोशिशों, नियमों और क़ानून के बावजूद राजस्थान में इस बार भी आखातीज (अक्षय तृतीया) पर बाल विवाह हुए है.सरकार का कहना है की पहले के मुक़ाबले इस बार बाल विवाह में कमी आई है क्योंकि बाल विवाह की रोकथाम के लिए नया क़ानून बना दिया गया है. सरकार ने अगले तीन साल में बाल विवाह पुरी तरह रोकने का कार्यकर्म बनाया है लेकिन महिला संगठनों का कहना है की जब तक समाज मे लड़कियों को बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा, इसे रोकना मुश्किल होगा. आखातीज पर बैंड-बाजों की गूँज के बीच यूँ तो हज़ारों विवाह हुए मगर उनमें कुछ ऐसे भी थे जो बाली उमर में शादी की डोर में बाँध दिए गए. सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए पुख्ता इंतज़ाम तो किए थे लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मे कुछ ऐसे इलाके भी है जहाँ न तो क़ानून पहुँचा और न ही जागरूकता। प्रशासन के मुताबिक कोई एक दर्जन मामलों में बाल विवाह होने की सूचना मिली थी. उन्हें रूकवा दिया गया है. पिछले साल क़रीब 700 शिकायतें मिली थीं. इसबार भी राज्य के दूर दराज इलाकों में चोरी-छिपे नौनिहालों को विवाह सूत्र में बाँध दिया गया. कमी तो आई, मगर...महिला एवं बाल कल्याण सचिव अल्का काला के मुताबिक पहले से बाल विवाहों मे कमी आई है. नए क़ानून में जो भी ऐसे विवाह में भाग लेगा या मदद करेगा, उसे सज़ा होगी. मगर उनका कहना था की ये बुराई तभी रुकेगी जब जनचेतना पैदा होगी. महिला कल्याण विभाग में सलाहकार मुक्ता अरोड़ा कहती है, "पिछले एक दशक में हालात बहुत बदले हैं. हम ये नहीं कहते कि बाल विवाह बिल्कुल बंद हो गए हैं मगर अब ऐसा नहीं है कि खुलेआम बच्चों की शादियाँ हो रही हैं." मुक्ता अरोड़ा कहती हैं, "अनेक मामलों में लड़की ख़ुद आगे आईं और बाल विवाह के विरोध मे खड़ी हो गईं. अब उनमें हिम्मत आई है." महिला सचिव अल्का काला कहती हैं कि ऐसी दो लड़कियों को तो राष्ट्रपति ने पुरस्कृत भी किया है. हाल में अजमेर की स्कूली छात्रा ज्योति को जब पता चला की उसकी शादी की जा रही तो उसने अपनी शिक्षिका से गुहार लगाई. ज्योति के घरवाले मान गए हैं और ज्योति को अब पढ़ने का मौका मिलेगा. नए क़ानून में बाल विवाह कराने या उसमें भाग लेने वालों के लिए अधिकतम दो साल की सज़ा और एक लाख तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है. बहरहाल, नारों और इश्तिहारों में इस बुराई से लड़ा जा रहा है. पर हकीक़त ये है की लोक व्यहार में बेटी को पराया धन समझा जाता है. इसीलिए माँ-बाप कच्ची उमर में उनके हाथ पीले कर देते है. सवाल फिर वहीं है.क्या नया क़ानून इस सामाजिक मान्यता को बदल पाएगा.
शुक्रवार, 09 मई, 2008 को 11:54 GMT तक के समाचारनारायण बारेठ बीबीसी संवाददाता, राजस्थान
बाल विवाह रोकने की सरकारी कोशिशों, नियमों और क़ानून के बावजूद राजस्थान में इस बार भी आखातीज (अक्षय तृतीया) पर बाल विवाह हुए है.सरकार का कहना है की पहले के मुक़ाबले इस बार बाल विवाह में कमी आई है क्योंकि बाल विवाह की रोकथाम के लिए नया क़ानून बना दिया गया है. सरकार ने अगले तीन साल में बाल विवाह पुरी तरह रोकने का कार्यकर्म बनाया है लेकिन महिला संगठनों का कहना है की जब तक समाज मे लड़कियों को बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा, इसे रोकना मुश्किल होगा. आखातीज पर बैंड-बाजों की गूँज के बीच यूँ तो हज़ारों विवाह हुए मगर उनमें कुछ ऐसे भी थे जो बाली उमर में शादी की डोर में बाँध दिए गए. सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए पुख्ता इंतज़ाम तो किए थे लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मे कुछ ऐसे इलाके भी है जहाँ न तो क़ानून पहुँचा और न ही जागरूकता। प्रशासन के मुताबिक कोई एक दर्जन मामलों में बाल विवाह होने की सूचना मिली थी. उन्हें रूकवा दिया गया है. पिछले साल क़रीब 700 शिकायतें मिली थीं. इसबार भी राज्य के दूर दराज इलाकों में चोरी-छिपे नौनिहालों को विवाह सूत्र में बाँध दिया गया. कमी तो आई, मगर...महिला एवं बाल कल्याण सचिव अल्का काला के मुताबिक पहले से बाल विवाहों मे कमी आई है. नए क़ानून में जो भी ऐसे विवाह में भाग लेगा या मदद करेगा, उसे सज़ा होगी. मगर उनका कहना था की ये बुराई तभी रुकेगी जब जनचेतना पैदा होगी. महिला कल्याण विभाग में सलाहकार मुक्ता अरोड़ा कहती है, "पिछले एक दशक में हालात बहुत बदले हैं. हम ये नहीं कहते कि बाल विवाह बिल्कुल बंद हो गए हैं मगर अब ऐसा नहीं है कि खुलेआम बच्चों की शादियाँ हो रही हैं." मुक्ता अरोड़ा कहती हैं, "अनेक मामलों में लड़की ख़ुद आगे आईं और बाल विवाह के विरोध मे खड़ी हो गईं. अब उनमें हिम्मत आई है." महिला सचिव अल्का काला कहती हैं कि ऐसी दो लड़कियों को तो राष्ट्रपति ने पुरस्कृत भी किया है. हाल में अजमेर की स्कूली छात्रा ज्योति को जब पता चला की उसकी शादी की जा रही तो उसने अपनी शिक्षिका से गुहार लगाई. ज्योति के घरवाले मान गए हैं और ज्योति को अब पढ़ने का मौका मिलेगा. नए क़ानून में बाल विवाह कराने या उसमें भाग लेने वालों के लिए अधिकतम दो साल की सज़ा और एक लाख तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है. बहरहाल, नारों और इश्तिहारों में इस बुराई से लड़ा जा रहा है. पर हकीक़त ये है की लोक व्यहार में बेटी को पराया धन समझा जाता है. इसीलिए माँ-बाप कच्ची उमर में उनके हाथ पीले कर देते है. सवाल फिर वहीं है.क्या नया क़ानून इस सामाजिक मान्यता को बदल पाएगा.
शुक्रवार, 09 मई, 2008 को 11:54 GMT तक के समाचारनारायण बारेठ बीबीसी संवाददाता, राजस्थान
2 comments:
बाल विवाह रोकने हेतु सख्त कानून बनाये जाने की जरुरत है जिसमे सजा का भी प्रावधान किया जाना चाहिए
i totally agree that child marriage should be banned and people who are still following the old and orthodox culture shuld be punished to set an example so that no one should dare to follow or repeated the same in any part of the country.
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