मेरा गाँव मेरा देश

Wednesday, January 23, 2008


कोई काम नहीं है मुश्किल, जब..

Jan 17, 12:28 pm
मनोहरपुर [रमेश सिंह]। कहते है कि अदम्य साहस और कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति हो, तो कुछ भी असंभव नहीं है। 'कोई काम नहीं है मुश्किल, जब किया इरादा पक्का' इस गीत को चरितार्थ करते हुए मनोहरपुर प्रखंड के इचापीढ़ गांव निवासी 42 वर्षीय इंद्रजीत महतो ने कोयल नदी पर लकड़ी का पुल बनाकर इतिहास रच दिया।
इंद्रजीत महतो ने इचापीढ़ बारह डुंगरी घाट से आनंदपुर जाने के लिए लगभग 25 दिनों की कड़ी मेहनत से कोयल नदी पर लकड़ी का पुल बना डाला। बीती नौ जनवरी को इंद्रजीत ने विधिवत पूजा-अर्चना कर पुल का उद्घाटन भी कर दिया। बारह डुंगरी से आनंदपुर के लिए कोयल नदी पर लकड़ी का पुल बनने से दर्जनों गांव के आम लोगों के साथ-साथ स्कूली छात्र-छात्राओं को भी इसका लाभ मिल रहा है। आनंदपुर में हाईस्कूल होने के कारण इचापीढ़, रायडीह, सोनपोखरी, मोहलडीहा, ढीपा एवं बड़पोस आदि गांव के छात्र-छात्राओं के लिए कोयल नदी पार कर स्कूल जाने-आने में काफी सुविधा हो गई है। पूर्व में इन गांवों के लोग व छात्र पानी में उतर कर ही नदी पार करते थे। नदी का जल स्तर थोड़ा सा भी बढ़ जाने से उन्हे नदी पार करने में काफी दिक्कत होती थीं। सड़क मार्ग से उन्हें मनोहरपुर, रायकेरा होते हुए आनंदपुर तक जाने के लिए लगभग 25 किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी। ज्ञात हो कि मनोहरपुर-रांची मार्ग पर ही आनंदपुर पड़ता है। इसलिए रांची आने-जाने वालों को भी बारहडुंगरी से कोयल नदी पार कर आनंदपुर से रांची, सिमडेगा, कोलेबीरा व बानो आदि की बस आसानी से मिल जाती है।
इंद्रजीत महतो बताते है कि उन्होंने प्रखंड के धानापाली में कोयल नदी पर बने लकड़ी के पुल को देखा था, जो झारखंड व उड़ीसा को जोड़ता है। धानापाली का लकड़ी पुल देखकर ही उन्होंने इचापीढ़ व आसपास के गांव के आम लोगों की परेशानी को देखते हुए बारह डूंगरी के पास कोयल नदी पर लकड़ी का पुल बनाने की ठानी थी। अपनी पत्नी व बच्चों की सहायता से 25 दिनों की कड़ी मेहनत से उन्होंने कोयल नदी पर लकड़ी का पुल बना डाला। इंद्रजीत ने बताया कि लकड़ी के पुल पर दो पहिये वाहन भी आसानी से चल सकते है। पुल से पार होने वाले स्वेच्छा से उन्हे जो पैसे देते है, उसे वे स्वीकार करते है। इस पैसे का उपयोग वे पुल को मजबूती देने के लिए करेगे। अगले आठ माह तक उन्हे पुल की देखभाल व मरम्मत नियमित तौर पर करते रहना है, जब तक कि बरसात न आ जाए।

साभार : जागरण

No comments: