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Monday, January 14, 2008

जाति प्रमाण-पत्र बनाना टेढी खीर

भोपाल। स्थायी जाति प्रमाण-पत्र बनाने की प्रक्रिया जटिल हो गई है। इसके लिए मांगे जा रहे दस्तावेजों की अनुपलब्धता के चलते अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को कई परेशानियां उठाना पड रही हैं। शासन द्वारा अनु. जाति, जनजाति के स्थायी जाति प्रमाण-पत्र बनाने के लिए 195॰ का निवास संबंधी प्रमाण-पत्र अनिवार्य कर दिया गया है। गौरतलब है कि 195॰ के दौर में इस जाति के अधिकतर लोग अनपढ और घुमक्कड प्रवृत्ति के हुआ करते थे। मजदूरी के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकते थे। इससे उस अवधि में इनका स्थायी ठिकाना नहीं होता था। वहीं 195॰ में मप्र मध्य भारत हुआ करता था और इसकी राजधानी नागपुर थी। साथ ही शासकीय नियमानुसार पूर्व में 12 वर्ष से अधिक के रिकार्ड को नष्ट कर दिया जाता था, जिसके चलते भी उस अवधि का रिकार्ड मिलना मुश्किल है। क्या हो रहा असर ः जाति प्रमाण -पत्र बनवाने में आ रही दिक्कतों के चलते अनु. जाति, जनजाति के लोगों को स्कूल, कालेजों में प्रवेश, छात्रवृत्ति, ऋण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। सरल हो प्रक्रिया ः मप्र कांग्रेस कमेटी स्वयंसेवी संगठन प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष कैलाश गुप्ता ने अजा-जजा के प्रमाण-पत्र बनाने की प्रक्रिया सरल करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि 5॰ साल पूर्व के दस्तावेज मांगने की की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिए।दस्तावेजों में से सन् 195॰ का स्थायी निवास प्रमाण संबंधी दस्तावेज बनाने की अनिवार्यता समाप्त की जाए।

साभार ः राज एक्सप्रेस, 14 Jan, 2008 01:33 AM

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