प्रो अरुण कुमार, अर्थशास्त्री
मुद्रास्फीति की दर बढ़ने का मतलब दाम बढ़ना नहीं है। बल्कि दर का काम या ज्यादा होना महंगाई की रफ़्तार को दर्शाता है। दूसरी ओर महंगाई मापने के पैमाने भी विभिन्न स्तरों पर अलग अलग हैं। शहरी, प्रांतीय, यहाँ तक की गरीब, अमीर के आधार पर भी पैमाने बने हुए हैं। सर्विस सेक्टर में ५५ प्रतिशत उत्पादन होता है, लेकिन इसे इंडेक्स में शामिल ही नहीं किया जाता। इस तरह से यह सिर्फ ४० प्रतिशत अर्थव्यवस्था को दर्शाता है। एक तरफ लोग पहले से अधिक उपभोक्तावादी हुए हैं, दूसरी ओर सरकार भी बाजार को खुला छोड़ देना चाहती है,...नियंत्रण ही नहीं रखना चाहती सरकार बाज़ार पर। जिससे मुद्रा का प्रवाह से बाज़ार लबालब रहे और जान पडे की भारत की गरीबी अब दूर हो गयी। गांधी जी अन्तिम व्यक्ति को प्रथम पायदान पर रखकर विकास की बात करते थे। आज इसी तरह की नीति की जरूरत है।
जैसा प्रो अरुण कुमार ने उमाशंकर मिश्र से कहा
1 comment:
आज तो सबकुछ पहले व्यक्ति को ध्यान में रखकर होता है. अंतिम को कौन पूछता है.
अतुल
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