उमाशंकर मिश्र/दिल्ली
अभी कुछ समय पहले मैग्सेसे अवार्ड विजेता अरविन्द केजरीवाल से मुलाकात हुयी। बातचीत के दौरान उन्होंने बुद्धकालीन एक घटना के बारे में बताया जिसमे २ राज्यों में उनकी सीमा से होकर बहने वाली नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद था. पानी को लेकर आये दिन झगडा और तनाव रहता था. समस्या को लेकर जनता की मौजूदुगी में इस बारे में विचार विमर्श कर निदान खोजने की बात तय हुयी. सभा में स्वयं रजा सिद्दार्थ (बुद्ध) भी मौजूद थे. चर्चा शुरू हुयी तो लोगों ने सुझाव देना शरू किया कि नदी हमारे राज्य की सीमा से होकर बहती है, इसके पानी पर हमारा अधिकार है और हम अपने अधिकार को बलपूर्वक हासिल कर लेंगे. इस बात का बुद्ध ने विरोध करते हुए कहा कि हिंसा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि खून खराबे से कुछ हासिल नहीं होगा. लेकिन वहां मौजूद सभी लोगों ने पानी कि समस्या को ध्यान में रखते हुए बुद्ध के निर्णय को नकार दिया, जबकि वो राजा थे.वास्तव में इस कहानी के माध्यम से अरविन्द जी मुझे बताना चाहते थे कि जनता के फैसले के आगे राजा को भी झुकना पड़ गया. यही सच्चा लोकतंत्र है जहाँ जनता अपने हितों को लेकर फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होती है. यही तो लोकशाही है? लेकिन एक लोक्तान्त्तिक देश होते हुए भी भारत में क्या लोगों इस तरह से निर्णय लेने कि स्वतंत्रता है? क्या जनता द्वारा चुने गए नेताओं द्वारा किये जाने वाले दुराचरण के बावजूद उन्हें पदच्युत करने कि ताकत जनता के पास है? बिलकुल नहीं, ऐसे तथाकथित जनप्रतिनिधियों को अगले ५ साल तक सहना मजबूरी बन जाती है. और यदि हम मजबूरी में जी रहे हैं और हमारी स्मस्याये जस कि तस बनी हुई हैं, उनका समाधान जनप्रतिनिधि नहीं कर रहे हैं तो कहे कि लोकशाही? शिव खेडा एक बात कहते हैं-जिस देश में हम अपनी पुलिस और अदालतों से डरते हों, क्या वहां लोकतंत्र हो सकता है? सवाल महत्वपूर्ण है, क्योंकि पुलिस और न्यायपालिका जनता की समस्याओं, विवादों का निपटारा कर एक न्यायमूलक समाज कि स्थापना के सूत्रधार होते हैं. लेकिन इन दोनों संस्थाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते आम आदमी की न्यायिक व्यवस्था से भी आस्था डगमगाने लगी है.अरविन्द केजरीवाल लोकतंत्र की टूटती इन सांसों को बचने की कोशिश में जुट गए हैं. पर्याप्त शोध के बाद वे लोकशाही को पुष्ट करने के लिए स्थानीय स्वशासन की संकल्पना को अमली जामा पहनाने में जुटे हैं. सूचना के अधिकार के प्रचार प्रसार से ख्याति अर्जित करने वाले अरविन्द स्थानीय स्वशासन और उसके महत्व का पाठ पढाने की पहल कर रहे हैं. इसकी शुरुआत राजधानी की एक अनधिकृत कालोनी सोनिया विहार से होने जा रही है. इसकी एक बैठक हाल ही में संपन्न भी हो चुकी है.जिस तरह गांवों में ग्रामसभा गाँव के निवासियों की बॉडी होती है और गाँव के विकास से सम्बंधित किसी निर्णय पर ग्रामसभा के सदस्यों का सहमत होना जरूरी होता है, उसी तरह से शहरों में एक मुनिसिपल वार्ड के तहत आने वाली कालोनियों में मोहल्ला सभाओं की रचना की जायेगी. इन मोहल्ला सभाओं में सथानीय लोग शामिल होंगे, जो अपने इलाके की समस्याओं को चिन्हित कर उस कारवाही करने के लिए कार्य करेंगे. सभी मोहल्ला सभाओं का चेयरमैन उस वार्ड का निगम पार्षद होगा. पार्षद को मिलने वाला फंड कहाँ खर्च हो रहा है, इसकी जानकारी लोगो को रहेगी, और प्राथमिकता के मुताबिक जहाँ ज्यादा जरुरत होगी विकास कार्य किये जायेंगे.यदि किसी राज्य की समस्त मोहल्ला सभाएं मिलकर किसी एक विषय पर एकमत हो जाती हैं तो सरकार उसपर कानून बनाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. इस तरह से कहा जाये तो जनप्रतिनिधि तो रहेंगे, लेकिन इस व्यवस्था के अस्तित्व में आ जाने से लोग अपने अधिकारों की मांग मोहल्ला कमेत्यों के माध्यम से करने लगेंगे तो नेताओं पर जनदबाव बढेगा और वे भी अभी जिम्मेदारी को निभाने के लिए बाध्य होंगे, क्योंकि उन्हें इस बात का आभास हो जायेगा की अब जनता एकजुट हो चुकी है और विकास कार्य न करने पर अगले चुनाव में लोग उन्हें सिरे से खारिज कर देंगे. ये डर नेताओं में आ जायेगा. शासकों और प्रशासकों को जनता का डर होता है तभी लोकशाही सही अर्थो में फलती फूलती है. लेकिन पिछले कुछ समय में तो इसका बिलकुल उलटा हुआ है, जनता अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं रहती, जिसका फायदा उठाकर अपराधी भी संसद में पहुँच जाते हैं.बहरहाल सोनिया विहार की महिला निगम पार्षद अन्नपूर्ण मिश्र ने इस कार्य में पहल कर एक मिसाल कायम की है. हालाकिं उन्हें राजनितिक विरोधियों समेत पार्टी के स्तर पर भी विरोध का भय सता रहा है. लेकिन एक महिला होने के बावजूद उनका लीक से हटकर किया गया यह प्रयास मील का पत्थर साबित होगा. मैंने उन्हें जब पत्र लिखकर इस पर बधाई दी तो उनका फन मेरे पास आया, काफी देर तक बातचीत होती रही. कालोनी की समस्याओं से लेकर राजनितिक विरोध की बात भी हुयी. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया की अरविन्द केजरीवाल के इस क्षेत्र में काम करने की बात से इलाके के आधिकारी भी सहम से रहे हैं. यही नहीं क्योंकि अब इस अभियान के लगातार चलने से अन्नपूर्ण मिश्र भी निरंतर इलाके के लोगों के संपर्क में रहेंगी, ऐसे में उनके राजनितिक विरोधियों को भी चिंता सताने लगी है. क्योंकि जनता से सीधा संवाद होने से अन्नपूर्ण जी के प्रति लोगों का रुझान बढ़ना भी स्वाभाविक है, इसलिए उनके विरोधी घबराए हुए हैं.बहरहाल इस अभियान के अभी रंग में आने में काफी समय है, लेकिन इसके प्रभाव को लेकर अंदरखाते बहस शुरू हो चुकी है. सोनिया विहार देश का पहला ऐसा इलाका होगा जहाँ इस तरह की शरुआत होने जा रही है. अरविन्द केजरीवाल के लिए यह अभियान एक ड्रीम प्रोजेक्ट की तरह होगा, क्योंकि यहाँ से मिलने वाली सफलता को वो एक माडल के तौर पर प्रस्तुत करना चाहेंगे. बहरहाल जो भी हो इन कवायदों को देखते हुए इतना कहा जा सकता है की यदि सच में लोग एकजुट होकर पाने अधिकारों और समस्याओं पर फैसले लेने लगे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करना फिर दुस्वप्न न रह जायेगा. और ऐसा हुआ तो सेनिटेशन, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोड इत्यादि बुनियादी सुविधाओं की कमी कि मार झेल रहे सोनिया विहार के निवासियों को आने वाले समय में नारकीय जीवन से मुक्ति मिल सकेगी.
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