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Monday, July 6, 2009

अब प्रणब दादा की बारी

उमाशंकर मिश्र
ममता दीदी के रेल बजट के बाद अब प्रणब दादा की बारी थी। मंदी के दौर और खेती के चौपट होने की मार झेल रही ग्रामीण जनता को नई सरकार से काफी उम्मीदें थी। कृषि क्षेत्र के लिए कम से कम चार प्रतिशत की विकास दर का लक्ष्य रखते हुए अर्थव्यवस्था के लिए नौ प्रतिशत की विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट में कार्पोरेट जगत को ज्यादा कुछ नहीं दिया गया लेकिन आम भारतीय और देश के लिए महत्वपूर्ण इकाइयों के लिए काफी कुछ प्रावधान किए गए हैं। बजट में कृषि जगत का खास ध्यान रखा गया है और रेल तथा सड़क तंत्र के विकास की बात की गई है।
हालांकि अंतरीम बजट में सामाजिक सरोकारों को लेकर सरकार प्रतिबद्ध जान पड़ रही थी, लेकिन अब जब प्रणब दादा का पिटारा खुल चुका है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाले पैरोकारों समेत विभिन्न अर्थशास्त्री कृषि की घोर उपेक्षा का आरोप सरकार पर लगा रहे हैं। . एग्रीकल्चर ट्रेड एण्ड पॉलिसी एक्सपर्ट-भास्कर गोस्वामी बजट के दो पहलुओं की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए कहते हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की राशि में 144 फीसदी की बढ़ोत्तरी कर 39 हजार करोड़ किए जाने को सही ठहराते हैं। वे कहते हैं कि-यदि सही तरीके से इसे लागू किया गया तो बेरोजगारों के साथ साथ किसानों को भी फायदा मिल सकता है। दूसरी ओर उर्वरक सब्सिडी के लिए 49980 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। फर्टीलाइजर्स पर दी जाने वाली सिब्सडी सीधे किसानों को दिये जाने की बात को भी जानकार उचित कदम मान रहे हैं। लेकिन इससे फर्टीलाइजर्स के उपभोग पैटर्न में आने वाले एक डेढ़ सालों में क्या परिवर्तन होंगे यह देखने की बात होगी। कृषि ऋण पर ब्याज दर घटाकर 4 प्रतिशत के स्तर पर लाये जाने की आशा अर्थशास्त्रियों को थी। लेकिन ऐसा न होने पर भास्कर गोस्वामी जैसे जानकारों कहना है कि-दीघZकालीन खेती की ओर सरकार का ध्यान बिल्कुल नहीं है और किसी न किसी बहाने सरकार खेती से अपना हाथ खींचकर उसे कार्पोरेट कंपनियों के हवाले कर देने में जुटी हुईZ है। वे कहते हैं-वर्तमान हालातों को देखते हुए किसानों के लिए आय की गारंटी से जुड़ी किसी घोषणा की उम्मीद थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक और बात हाईब्रिड बीजों के दुष्प्रभावों को देखते हुए इस पर सख्त कदम उठाने की अपेक्षा भी थी, लेकिन इस पर भी कुछ नहीं हुआ। फिलहाल जानकारों की मानें तो इस बजट से खेती में किसी तरह के सुधार की आशा नहीं की जानी चाहिए। इस बीच कर्ज माफी योजना को दिसंबर तक बढ़ाये जाने को किसानों को राहत पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वित्त मंत्री ने महाराष्ट्र में इस योजना से वंचित उन किसानों के लिए कार्य बल गठन करने का ऐलान किया जिन्होंने महाजनों से ऋण लिया हुआ है। इसके अलावा सरकार ने उन किसानों के लिए 6 फीसदी की दर से कर्ज देने की घोषणा की जो अपने कर्ज का भुगतान समय पर करते हैं। यह दर दूसरों से लिए जाने वाले ब्याज दर से एक फीसदी कम है। केन्द्र ने इस उद्देश्य के लिए अंतरिम बजट के मुकाबले इस बजट में 411 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि का आवंटन किया है। मुखर्जी का कहना है कि सरकार अल्पकालिक फसल कर्ज के लिए ब्याज सब्सिडी देना जारी रखेगी। तीन लाख रुपये तक के ऋण पर किसानों को 7 फीसद ब्याज देना होगा। सरकार ने वित्त वर्ष 2009.10 के लिए कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ाकर ३,2500 करोड़ रुपये कर दिया है।
बहरहाल राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की राशि में बढ़ोत्तरी एवं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का आरंभ करने के साथ 1.2 करोड़ नौकरियां प्रतिवर्ष देने को संतोषजनक माना जा रहा है। राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना 2009-10 में 63 फीसदी की वृद्धि के साथ 8.800 करोड़ रुपये का आवंटन, प्रधानमंत्री आदशZ ग्राम योजना में 100 करोड़ का प्रावधान, महिला साक्षरता के लिए राष्ट्रीय मिशन प्रारंभ करने की बात सरकार कर रही है। लेकिन जिस तरह से पेट्रोलियम पद्धार्थों के दामों में बढ़ोत्तरी हो रही हे, उसे नकारात्मक माना जा रहा है। आज उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पहले ही 10 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच चुका है, जानकारों के मुताबिक ऐसे में आने वाले समय में इसका सीधा असर कमोडिटी दामों पर पड़ेगा।
सरकार ने वित्त वर्ष २००९-10 में कृषि क्षेत्र के लिए लक्ष्य बढाकर ३,२५,000 करोड़ रुपये कर दिया है। पिछले वित्तीय वर्ष में यह लक्ष्य 280000 करोड़ रुपये रखा गया था। हालांकि कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज के तौर पर २,८७,000 करोड़ रुपये दिए गए। लेकिन कमल नयन काबरा जैसे अर्थशास्त्रियों की नज़र में यह नाकाफी है। वे कहते हैं कि जरूरत को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्र की तो घोर उपेक्षा की गई है। आधार संरचना में जीडीपी के 9 फीसदी के निवेश की बात पर वे कहते हैं कि भारत के 60 लाख गांवोंं में औसतन यदि 10 लाख रुपये भी लगा दिये जाये ंतो कुछ होने वाला नहीं है। सेनीटेशन की समस्या का हवाला देते हुए कहते हैं कि आज भी औरतों को कष्ट सहना पड़ता है। बकौल काबरा एक ओर तो सरकार आलीशान फलाईओवर्स बना रही है, बाम्बे में बाढ़ राहत के लिए 500 करोड़ रुपये दिये जा रहे है, लेकिन बिहार एक बार फिर बाढ़ के मुहाने पर खड़ा है, उसके लिए कुछ नहीं किया गया। आम आदमी की बात करते हुए काबरा कहते हैं कि गरीब के पल्ले अंतत: कुछ नहीं पड़ता, सब बिचौलियोंं की जेबों में चला जाता है। वे कहते हैं कि आज जरूरत है खेती के कार्पोरेटाइजेशन को रोकने और सीमांत एवं गरीब किसानों के हित में कदम उठाये जाने की।

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