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Friday, March 27, 2009

गांव में ही हो उच्च शिक्षा की व्यवस्था


संगीता शुक्ला
गुजरात को विकासोन्मुख राज्यों की श्रेणी में अग्रणी माना जाता है और राज्य के विकास में एक महत्वपूर्ण कारक गुजरातियों की विकासोन्मुख सोच भी है। गावों में उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना की मांग गुजरातियों की इसी विकासात्मक सोच का परिचायक कही जा सकती है।
पंद्रहवीं लोकसभा के लिए चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो गई है। अब चंद दिनों बाद ही चुनाव प्रक्रिया भी शुरु हो जायेगी और नई लोकसभा का गठन होगा। नई लोकसभा का ताज किसके सर पर होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन आजकल यह देखा जा रहा है कि सभी पार्टिया अपना पूरा जोर लगा रही है। शहरों में तो चुनावी माहौल चारों ओर दिख ही रहा है लेकिन गांवों में भी इन दिनों नेताओ की आवाजाही बढ गई है और गांव की जरुरतो पर खास ध्यान दिया जाता है। क्या उनके द्वारा दिये गये वचनो का पालन चुनाव जीतने के बाद होता है? या फिर नेताओं को जितनी फिक्र चुनाव से पहले गांव की होती है उतनी ही बाद में भी...गांवों के विकास की ओर सरकार क्या रुख अपनाती है इन्ही चंद सवालो का उत्तर जानने के लिए सोपान ने गुजरात के कच्छ, सौराष्ट्र और मध्य तथा उत्तर गुजरात के कुछ गांवो की मुलाकात ली और जाना कि गांवो के लोगों की क्या अपेक्षाएं है।
सबसे पहले सोपान ने कच्छ की मुलाकात ली और वहां के माहौल के बारे में हाजीभाई से बात की। हाजीभाई की उम्र 33 साल है और वे लोन्ड्री और बांधणी बनाने का धंधा करते हैं। जब हमने उनसे पूछा की आज देश में चारों ओर आर्थिक संकट छाया हुआ है तो इसकी असर क्या उनके धंधे पर भी हुई है? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि हां, जरुर हुई है क्योंकि बांधणी बनाने के लिए जो कपडा वे खरीदते है वह महंगा हो गया है और साथ ही बाजार में अन्य चीजों की किंमते भी बढी है जिससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पडता है। चुनावी माहौल के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि गुजरात की मौजुदा सरकार से वे खुश है क्योंकि इसके चलते उनके गांव का काफि विकास हुआ है और अब बिजली-पानी की किल्लत का सामना उन्हें बिल्कुल भी नहीं करना पडता है। जब हमने उनसे पूछा कि वे मतदान किस आधार पर करेंगें जाति या विकास ? तो उन्होंने बताया कि वे जातपात में नहीं मानते उन्हें केवल विकास चाहिये। नई सरकार से उनकी क्या अपेक्षाएं हैं इसके उत्तर मैं उन्होंने बताया कि यहां शिक्षा जरा कमजोर है इसलिए यदि नई सरकार शिक्षा की ओर अधिक ध्यान देगी तो उन्हें अच्छा लगेगा।
कच्छ-भुज विस्तार से ही हमने हीनाबेन पोनल से भी बातचीत की। हीनाबेन का वहां फोटोग्राफी और विडियोग्राफी का स्टुडियो है। हीनाबेन ने हमें बताया कि 26 जनवरी 2001 को कच्छ में भयंकर भूकंप आने से सारा शहर तबाह हो गया था लेकिन सरकार तथा अन्य सेवा संस्थाओं की मदद से आज कच्छ का नवनिर्माण हुआ है और अब कच्छ के हरेक व्यक्ति के पास अपना मकान और रोजगार है, जिससे कच्छवासी काफि खुश है। मतदान किस आधार पर करेंगे ऐसा पूछने पर उन्होंने बताया कि हम विकास को और जो उम्मीदवार उनके विस्तार से खडा रहेगा उसकी काबिलियत को ध्यान में रखकर ही मतदान करेंगे किसी जाति या पक्ष को ध्यान में रखकर नहीं।
कच्छ के बाद राजकोट के विडनगर गांव के रसिकभाई प्रागजीभाई रुपारेल मूंगफली और पपीते की खेती करते हैं। उन्होंने हमें बताया की गुजरात सरकार की "ज्योतिग्राम योजना" से उन्हें बहुत लाभ हुआ है। खेती के लिए बिजली-पानी भरपूर मिलता है। गांव का भी विकास हुआ है और पक्की सडके, मकान बनाये गये है। उन्होंने बताया कि चुनाव नजदीक आते ही गांव में सांसदो का आनाजाना बढ जाता है और इन दिनों वे खास हमारा हालचाल जानने आते हैं, फिर चाहे वे पांच साल तक अपनी शक्ल भी न दिखाये। खैर, इन दिनों दिये गये वचनों का वे कितना पालन करते हैं इसके जवाब में उन्होंने बताया कि 50% वचन पूरे किये जाते है। राष्ट्रीय पक्षो से उनकी क्या अपेक्षा हैं? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय पक्ष यदि एकजुट होकर काम करेंगे तभी देश का विकास हो सकेगा। मौजुदा राज्य सरकार से वे खुश है क्योंकि वास्तव में गांव का विकास हुआ है। नई सरकार से उनकी अपेक्षाओं के बारे में वे बताते हैं कि उनके गांव में 12 कक्षा तक स्कूल तो है लेकिन कोलेज की व्यवस्था नहीं हैं जिससे बच्चो को उच्च शिक्षा के लिए राजकोट शहर तक जाना पडता है। यदि गांव में ही उच्च शिक्षा की सुविधा मिल जाय तो बच्चो को आसानी रहेगी।
राजकोट शहर के ही एक अन्य गांव लाखावाड में भी हम गये। वहां एक बेरोजगार युवक रणजीतभाई मेर से हमने बातचीत की। रणजीतभाई की उम्र 22 वर्ष है और वे 10वीं पास है। उच्च शिक्षा नहीं ली क्योंकि गांव में सुविधा न थी और वे शहर जाना नहीं चाहते थे। उनके पिताजी कपास व मूंगफली की खेती करते है। रणजीतभाई ने हमें बताया कि वे खेती काम में ही पिताजी की मदद करते हैं क्योंकि नोकरी उन्हें मिल नहीं सकती। मतदान किस आधार पर करेंगे? इसके उत्तर में उन्होंने बताया कि वे उम्मीदवार को ही देखते हैं फिर वो किसी भी पक्ष या जाति का क्यों न हो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। बस, उम्मीदवार की नीयत उनके गांव का विकास करने की होनी चाहिये। पिछले पांच वर्षो में लाखावाड गांव में काफि विकास हुआ है।
आणंद जिल्ले के अदाण गांव के कल्पेशभाई मनुभाई पटेल की उम्र 36 वर्ष है और वे एग्रीकल्चर व फर्टीलाईझर मेन्युफेक्चरींग का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके गांव में कुछ लोग है जो जातिवाद को प्रोत्साहन देते हैं लेकिन वे उनमें नहीं हैं। राज्य सरकार ने उनके गांव का अच्छा विकास किया है। केन्द्र सरकार से उनकी अपेक्षा हैं कि किसी भी अंगुठा छाप व्यक्ति को कोई भी उच्च पद नहीं देना चाहिये। देश की कमान उन्हीं के हाथो सोंपनी चाहिये जो दूरदृष्टि रखता हों।
आणंद जिल्ले के ही पीपलाव गांव की एक गृहिणी प्रेमिलाबेन फूनाभाई पटेल की उम्र 56 वर्ष हैं और वे अच्छी तरह जानती हैं कि वोट किसे देना चाहिये क्योंकि वे अनुभवी हैं। उनके पति खेती का व्यवसाय करते हैं और उनकी एक बेटी अमेरिका में हैं जिससे वे मोबाइल से बात करती है। प्रेमिलाबेन ने बताया कि गांवों में मोबाइल आ जाने से उन्हें काफि सुविधा हो गई है। गांव के विकास से और मौजुदा राज्य सरकार से वे खुश है। उन्होंने बताया कि यदि सरकार इसी प्रकार उनके गांव का विकास करती रहेंगी तो उन्हें उनसे कोई शिकायत नहीं है।
गुजरात गांवों का वास्तव में विकास हुआ हैं और वहां की प्रजा भी विकास से खुश है। भविष्य में भी वे यही चाहते है कि सत्ता की बागडोर उसे ही सोंपी जाय तो पढा-लिखा हो, जिसमें दूरदृष्टि हो, देश सेवा ही जिसका धर्म हो। वह देश विकास को ध्यान में रखे न कि स्वविकास को। गुजरात के आज सभी गांव में मोबाइल क्रांति आ चुकी है जिससे लोगों की नजदिकीयां बढी है। जातिवाद या ज्ञातिवाद को वे बिल्कुल भी महत्व देना नहीं चाहते हैं। गांववासियो की महत्वकांक्षाएं तो हमने देखी अब देखना यह है कि उनकी इन अपेक्षाओं पर कौन-कौन खरा उतरता है और सत्ता की बागडोर किसके हाथों में जाती है।
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5 comments:

Anonymous said...

गुजरात के चुनावों पर बढ़िया कवरेज... इस बार मुख्य मीडिया से ज्यादा मुक्त मीडिया (ब्लॉग पत्रकारिता) का बोलबाला रहने की उम्मीद है। पोस्ट्स जारी रखें। सादर

अविनाश वाचस्पति said...

गुजरात में

दिन में

की गई

मेहनत
के आगे

नत।

संगीता पुरी said...

बढिया विश्‍लेषण किया आपने गुजरात के चुनावी माहौल का ... अच्‍छी जानकारी मिली ... धन्‍यवाद।

संजय बेंगाणी said...

बात हजम नहीं हुई. हमारे गुजरात में न तो धर्मनिरपेक्ष सरकार है न जाति विशेष की. न वामपंथ है न समाजवाद है फिर लोग खूश कैसे है. सरकार तो दरिंदों की है. विश्वास नहीं होता तो एन.डी.टीवी से पूछ लो...

Unknown said...

हे हे हे हे संजय भाई, लगता है लेखक ने "फ़िराक" नहीं देखी… और शायद NDTV नाम का मुस्लिम चैनल भी नहीं देखते हैं ये… :)