अजय कुमार
Auद्दust 21, 2008
दृष्टिकोण। अकसर गांव के लोगों को जाति या जन्म प्रमाण-पत्र हासिल करने के लिए सैकड़ों किलोमीटर तक की यात्रा करना पड़ती है। इस कवायद में महज एक प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए उनका पूरा दिन बर्बाद हो जाता है।
उन्हें भू-अभिलेख (लैंड रिकॉर्ड) की एक प्रति हासिल करने के लिए पटवारियों के कई-कई दिन तक चक्कर काटने पड़ते हैं। यहां तक कि टेलीफोन या बिजली विभाग में शिकायत करना भी काफी मशक्कत का काम होता है। एफआईआर दर्ज करने की तो बात ही न की जाए तो बेहतर रहेगा।
सूचनाओं को अविलंब व न्यूनतम लागत पर लोगों को उपलब्ध करवाना शासन की जिम्मेदारी मानी जाती है। सरकारी क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर इस अवधारणा को यथार्थ के धरातल पर उतारने के कई प्रयास किए गए हैं। इसे आजकल ई-प्रशासन (ई-गवर्नेस) के नाम से जाना जाता है।
भारतीय जनता ई-प्रशासन के लाभों का स्वाद कम्प्यूटरीकृत रेलवे आरक्षण, कर्नाटक में च्भूमि’ परियोजना के तहत भू-अभिलेख तक आसान पहुंच, आंध्रप्रदेश में ई-सेवा केंद्रों के जरिए बिजली बिलों इत्यादि का ऑनलाइन भुगतान, महाराष्ट्र में च्सरिता’ परियोजना के जरिए दस्तावेजों का शीघ्र पंजीयन और अन्य राज्यों में चल रही ऐसी ही कई परियोजनाओं के माध्यम से चख चुकी है।
सवाल यह है कि ऐसी सफल परियोजनाएं केवल एक या दो राज्यों तक ही सीमित क्यों रहना चाहिए? आखिर ई-प्रशासन के लाभ ग्रामीण जनता तक भी तो पहुंचें। इसी के मद्देनजर भारत सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना बनाई है। इसका मकसद ऐसी व्यवस्था बनाना है ताकि लोगों को कोई भी जानकारी पंचायत स्तर पर ही मिल जाए और उन्हें इधर-उधर भटकते हुए समय व पैसा बर्बाद न करना पड़े।
23 हजार करोड़ रुपए की इस योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2006 में मंजूरी दी थी और इसके 2009 तक अमल में आने की संभावना है। इस योजना के पीछे दृष्टिकोण (विजन) यही है कि च्आम जनता को सभी सरकारी सेवाएं उनके गांवों या कस्बों में एक ही आउटलेट के जरिए वहन करने योग्य कीमत पर उपलब्ध करवाना और इन सेवाओं की क्षमता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बनाए रखना’।
सूचनाएं वास्तव में ग्रामीण जनता तक पहुंचें, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए देश की सभी पंचायतों में लगभग एक लाख सिटीजन कियोस्क (ई-गुमटियां) स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसमें निजी क्षेत्र व एनजीओ की भी मदद ली जाएगी। यह संभवत: पहला मौका होगा जब सूचना सेवाओं को गांवों पर केंद्रित किया गया है जहां देश की अधिसंख्य आबादी रहती है। ऐसी ही ई-गुमटियां इससे पहले पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू एवं कश्मीर और अंडमान व निकोबार द्वीप समूहों में स्थापित की जा चुकी हैं।
ई-प्रशासन की योजना में 27 परियोजनाएं मिशन के रूप में तैयार की गई हैं। इनमें से नौ परियोजनाएं केंद्र सरकार के अधीन होंगी जिनके तहत आयकर, कंपनी मामलों, पासपोर्ट, पेंशन, केंद्रीय सीमा एवं उत्पाद शुल्क इत्यादि विभागों का कम्प्यूटरीकरण किया जाएगा। अन्य कुछ परियोजनाओं पर राज्य सरकारें काम करेंगी जिनके तहत कृषि, भू-अभिलेख, पुलिस, कोषालय, संपत्ति कर, वाणिज्यिक कर, सड़क परिवहन जैसे विभागों और रोजगार कार्यालय, नगर निकायों व पंचायतों का कम्प्यूटरीकरण किया जाएगा। ई-अदालतें, ई-खरीद इत्यादि भी इस योजना के अंतर्गत हैं। राज्यों में इन ई-गुमटियों को डाटा केंद्र मदद करेंगे जबकि कनेक्टिविटी राज्य स्तरीय नेटवर्क च्स्वान’ द्वारा उपलब्ध करवाई जाएगी।
च्स्वान’ फाइबर ऑप्टिक आधारित होगा जो उच्च गति की ब्राडबैंड कनेक्टिीविटी राज्यों व जिलों से लेकर ब्लॉक मुख्यालय तक मुहैया करवाएगा। यह काम भी सार्वजनिक निजी भागीदारी के साथ किया जाएगा और इस पर 3,क्क्क् करोड़ रुपए से भी अधिक खर्च किए जाएंगे। ई-प्रशासन योजना के कुछ अन्य बिंदु जैसे सभी नागरिकों, व्यवसायों व संपत्ति के लिए एक विशेष पहचान कोड देना, प्रशिक्षण के जरिए कार्यकुशलता में इजाफा करना, प्रौद्योगिकी में अनुसंधान व विकास इत्यादि इसकी गुणवत्ता व सफलता को सुनिश्चित करेंगे। इस योजना में समग्र नजरिए के साथ निजी भागीदारी को भी आमंत्रित किया गया है ताकि सूचनाओं के संप्रेषण की यह प्रणाली टिकाऊ बनी रहे।
इस योजना की राह में कई बाधाएं भी हैं, जिनसे पार पाना होगा। अधिकांश ई-प्रशासन परियोजनाओं की सबसे बड़ी कमी यह है कि इनमें आम जनता को सूचनाएं उनकी स्थानीय भाषा में मुहैया नहीं करवाई जातीं। दूसरी बड़ी समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता आसान नहीं होना है जिससे इस योजना की रफ्तार कम होने की आशंका है।
तीसरी बड़ी समस्या यह है कि सरकारें अब भी मौजूदा प्रक्रियाओं एवं नियम-कायदों को बदलने से बच रही हैं जबकि इनके बदलाव से सूचनाओं के संप्रेषण की गति में सहायता ही मिलेगी। चौथी समस्या यह है कि इन परियोजनाओं के बारे में न तो प्रिंट और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जनता में पर्याप्त जागरूकता फैलाई जा रही है। इसके अलावा ई-प्रशासन परियोजनाएं मोबाइल फोन के व्यापक दायरे में होने के बावजूद इसकी ताकत का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं।
इनसे भी बढ़कर सबसे अहम बात होगी सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता में बदलाव करना। सरकारी कर्मचारियों की इस मानसिकता की वजह से कई ई-प्रशासन परियोजनाएं गति नहीं पकड़ पा रही हैं। इसके अलावा कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का अनुभव भी अच्छा नहीं रहा है। यह अनुभव बताता है कि कर्मचारियों को केवल प्रशिक्षण देने भर से काम नहीं बनता। सूचनाओं के आसान संप्रेषण के लिए कर्मचारियों को हर स्तर पर प्रोत्साहित करना भी जरूरी है।
च्सूचना ही शक्ति है’ और सरकारी कर्मचारी बिलकुल नहीं चाहेंगे कि आम जनता को इस शक्ति से लैस किया जाए। कुछ सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलीभगत से कार्य करने वाले दलालों की रोजी-रोटी इन सेवाओं को उपलब्ध करवाने से चलती है।
ये दोनों एक ऐसा गुट बनाते हैं, जिसे तोड़ना काफी कठिन होगा। राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना की सफलता सुनिश्चित करते हुए अगर हम आम नागरिक की सूचना संबंधी जरूरतों को बेरोकटोक पूरा करना चाहते हैं तो इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक कुशलता और जनता व मीडिया का दबाव जरूरी है।
उन्हें भू-अभिलेख (लैंड रिकॉर्ड) की एक प्रति हासिल करने के लिए पटवारियों के कई-कई दिन तक चक्कर काटने पड़ते हैं। यहां तक कि टेलीफोन या बिजली विभाग में शिकायत करना भी काफी मशक्कत का काम होता है। एफआईआर दर्ज करने की तो बात ही न की जाए तो बेहतर रहेगा।
सूचनाओं को अविलंब व न्यूनतम लागत पर लोगों को उपलब्ध करवाना शासन की जिम्मेदारी मानी जाती है। सरकारी क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर इस अवधारणा को यथार्थ के धरातल पर उतारने के कई प्रयास किए गए हैं। इसे आजकल ई-प्रशासन (ई-गवर्नेस) के नाम से जाना जाता है।
भारतीय जनता ई-प्रशासन के लाभों का स्वाद कम्प्यूटरीकृत रेलवे आरक्षण, कर्नाटक में च्भूमि’ परियोजना के तहत भू-अभिलेख तक आसान पहुंच, आंध्रप्रदेश में ई-सेवा केंद्रों के जरिए बिजली बिलों इत्यादि का ऑनलाइन भुगतान, महाराष्ट्र में च्सरिता’ परियोजना के जरिए दस्तावेजों का शीघ्र पंजीयन और अन्य राज्यों में चल रही ऐसी ही कई परियोजनाओं के माध्यम से चख चुकी है।
सवाल यह है कि ऐसी सफल परियोजनाएं केवल एक या दो राज्यों तक ही सीमित क्यों रहना चाहिए? आखिर ई-प्रशासन के लाभ ग्रामीण जनता तक भी तो पहुंचें। इसी के मद्देनजर भारत सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना बनाई है। इसका मकसद ऐसी व्यवस्था बनाना है ताकि लोगों को कोई भी जानकारी पंचायत स्तर पर ही मिल जाए और उन्हें इधर-उधर भटकते हुए समय व पैसा बर्बाद न करना पड़े।
23 हजार करोड़ रुपए की इस योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2006 में मंजूरी दी थी और इसके 2009 तक अमल में आने की संभावना है। इस योजना के पीछे दृष्टिकोण (विजन) यही है कि च्आम जनता को सभी सरकारी सेवाएं उनके गांवों या कस्बों में एक ही आउटलेट के जरिए वहन करने योग्य कीमत पर उपलब्ध करवाना और इन सेवाओं की क्षमता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बनाए रखना’।
सूचनाएं वास्तव में ग्रामीण जनता तक पहुंचें, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए देश की सभी पंचायतों में लगभग एक लाख सिटीजन कियोस्क (ई-गुमटियां) स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसमें निजी क्षेत्र व एनजीओ की भी मदद ली जाएगी। यह संभवत: पहला मौका होगा जब सूचना सेवाओं को गांवों पर केंद्रित किया गया है जहां देश की अधिसंख्य आबादी रहती है। ऐसी ही ई-गुमटियां इससे पहले पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू एवं कश्मीर और अंडमान व निकोबार द्वीप समूहों में स्थापित की जा चुकी हैं।
ई-प्रशासन की योजना में 27 परियोजनाएं मिशन के रूप में तैयार की गई हैं। इनमें से नौ परियोजनाएं केंद्र सरकार के अधीन होंगी जिनके तहत आयकर, कंपनी मामलों, पासपोर्ट, पेंशन, केंद्रीय सीमा एवं उत्पाद शुल्क इत्यादि विभागों का कम्प्यूटरीकरण किया जाएगा। अन्य कुछ परियोजनाओं पर राज्य सरकारें काम करेंगी जिनके तहत कृषि, भू-अभिलेख, पुलिस, कोषालय, संपत्ति कर, वाणिज्यिक कर, सड़क परिवहन जैसे विभागों और रोजगार कार्यालय, नगर निकायों व पंचायतों का कम्प्यूटरीकरण किया जाएगा। ई-अदालतें, ई-खरीद इत्यादि भी इस योजना के अंतर्गत हैं। राज्यों में इन ई-गुमटियों को डाटा केंद्र मदद करेंगे जबकि कनेक्टिविटी राज्य स्तरीय नेटवर्क च्स्वान’ द्वारा उपलब्ध करवाई जाएगी।
च्स्वान’ फाइबर ऑप्टिक आधारित होगा जो उच्च गति की ब्राडबैंड कनेक्टिीविटी राज्यों व जिलों से लेकर ब्लॉक मुख्यालय तक मुहैया करवाएगा। यह काम भी सार्वजनिक निजी भागीदारी के साथ किया जाएगा और इस पर 3,क्क्क् करोड़ रुपए से भी अधिक खर्च किए जाएंगे। ई-प्रशासन योजना के कुछ अन्य बिंदु जैसे सभी नागरिकों, व्यवसायों व संपत्ति के लिए एक विशेष पहचान कोड देना, प्रशिक्षण के जरिए कार्यकुशलता में इजाफा करना, प्रौद्योगिकी में अनुसंधान व विकास इत्यादि इसकी गुणवत्ता व सफलता को सुनिश्चित करेंगे। इस योजना में समग्र नजरिए के साथ निजी भागीदारी को भी आमंत्रित किया गया है ताकि सूचनाओं के संप्रेषण की यह प्रणाली टिकाऊ बनी रहे।
इस योजना की राह में कई बाधाएं भी हैं, जिनसे पार पाना होगा। अधिकांश ई-प्रशासन परियोजनाओं की सबसे बड़ी कमी यह है कि इनमें आम जनता को सूचनाएं उनकी स्थानीय भाषा में मुहैया नहीं करवाई जातीं। दूसरी बड़ी समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता आसान नहीं होना है जिससे इस योजना की रफ्तार कम होने की आशंका है।
तीसरी बड़ी समस्या यह है कि सरकारें अब भी मौजूदा प्रक्रियाओं एवं नियम-कायदों को बदलने से बच रही हैं जबकि इनके बदलाव से सूचनाओं के संप्रेषण की गति में सहायता ही मिलेगी। चौथी समस्या यह है कि इन परियोजनाओं के बारे में न तो प्रिंट और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जनता में पर्याप्त जागरूकता फैलाई जा रही है। इसके अलावा ई-प्रशासन परियोजनाएं मोबाइल फोन के व्यापक दायरे में होने के बावजूद इसकी ताकत का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं।
इनसे भी बढ़कर सबसे अहम बात होगी सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता में बदलाव करना। सरकारी कर्मचारियों की इस मानसिकता की वजह से कई ई-प्रशासन परियोजनाएं गति नहीं पकड़ पा रही हैं। इसके अलावा कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का अनुभव भी अच्छा नहीं रहा है। यह अनुभव बताता है कि कर्मचारियों को केवल प्रशिक्षण देने भर से काम नहीं बनता। सूचनाओं के आसान संप्रेषण के लिए कर्मचारियों को हर स्तर पर प्रोत्साहित करना भी जरूरी है।
च्सूचना ही शक्ति है’ और सरकारी कर्मचारी बिलकुल नहीं चाहेंगे कि आम जनता को इस शक्ति से लैस किया जाए। कुछ सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलीभगत से कार्य करने वाले दलालों की रोजी-रोटी इन सेवाओं को उपलब्ध करवाने से चलती है।
ये दोनों एक ऐसा गुट बनाते हैं, जिसे तोड़ना काफी कठिन होगा। राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना की सफलता सुनिश्चित करते हुए अगर हम आम नागरिक की सूचना संबंधी जरूरतों को बेरोकटोक पूरा करना चाहते हैं तो इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक कुशलता और जनता व मीडिया का दबाव जरूरी है।
सूचना प्रौद्योगिकी एवं ग्रामीण विकास मामलों के विशेषज्ञ हैं।
1 comment:
सबसे पहले ग्रामोन्मुख विकास पर केन्द्रित हिन्दी चिट्ठा लिखने के लिये साधुवाद स्वीकारें। मुझे आपकी बातें बहुत सम्यक लगीं। मुझे भी लगता है कि आसानी से सूचना तक पहुँच पाने की जरूरत सबसे अधिक ग्रामीणों को है।
उनके बैंक खाते में गन्ना-बिक्री का पैसा आया या नहीं, यह जानने के लिये कम से कम एक दिन लगता है।
उनके 'परसेसी' बेटे ने यदि उनको पैसा भेजा तो उनके पास पहुँचने में महीनो लग सकता है।
उनका नहीं पता होता कि अनाज का समर्थन मूल्य क्या है, न्यूनतम मजदूरी क्या है; उनके बच्चों को कम से कम फ़ीस में अच्छी शिक्षा कहाँ से दिलायी जा सकती है; कल का मौसम कैसा रहेगा; नहर में पानी कब आयेगा; उनकी भैंस की बीमारी किसको बतायी जाय आदि।
आपके इस कथन से भी सहमत हूँ कि बहुत से चोट्टे लोग नहीं चाहते कि इस देश का सूचना तन्त्र मजबूत हो क्योंकि इससे उनकी हराम की कमायी ठप्प ओ जायेगी।
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