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Saturday, May 24, 2008


बिदेसिया


बिदेसिया बिहार के पिश्चमी जिलों आरा, छपरा, तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों विशेषकर बलिया, देवरिया का लोकनाट्य रूप है। भिखारी ठाकुर ने बिदेसिया लोकनाट्य शैली को विकसित किया, जिसकी कथा संक्षेप में इस प्रकार है- कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए विदेश कलकत्त, रंगून जाता है। उसकी पत्नी उसके वियोग के कारण अनेक कष्ट सहन करती है, जैसे गांव के जमींदार की बर्बरता आदि। अंत में किसी बटोही के द्वारा वह अपना दुखद संदेश पति के पास भेजती है, जिसे सुनकर वह अपनी नौकरी छोड़कर घर लौट आता है। बिदेसिया शैली में रचित लोकनाट्यों में इसी कथा को अलग अलग ढंग से दोहराया जाता है। इसी लोकनाट्य शैली में वह सुप्रसिद्ध लोकगीत उपलब्ध होता है, जो बिदेसिया, लोकगीत के नाम से जाना जाता है। चूंकी इस लोकगीत की प्रत्येक पंक्ति में बिदेसिया का नाम आता है, अत: यह इसी नाम से विख्यात है। इस गीत की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं -


गवना कराई सइयां घर बइठवले से

अपने चलेले परदेस रे बिदेसिया।

चढ़ली जवनियां बेरिन मइली हमरी से के

मोर हरि है कलेस रे बिदेसिया।।

दिनवां बीतेला सइयां बटिया जोहत तौर

रतिया बीतेली जागि-जागि रे बिदेसिया।

घरी राति गइले पहर रात गइले से

धधके करेजवा में आगि रे बिदेसिया।।


भोजपुरी क्षेत्र में बिदेसिया लोकनाट्य का इतना अधिक प्रचार है कि सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण दशZक इसे देखने के लिए एकत्रित होते हैं। इस लोकनाट्य में सामाजिक बुराइयों, विशेषकर बाल-विवाह और वृद्ध-विवाह की ओर जनता का ध्यान उन्ही की बोली भोजपुरी में आकर्षित किया जाता है। इसकी भाषा सरस और मधुर होती है। मीडिया लोकमाध्यमों के रूप में िशक्षा के प्रसार तथा अपनी बात आम जनता तक पहुंचाने के लिए इस प्रकार के माध्यम अत्यंत उपयोगी और कारगर हैं।

1 comment:

Unknown said...

THE BLOG IS VERY NICE, WHERE THE SUBJECTS UNDERTAKEN ARE DEEPLY STUDIED AND NICELY WRITTEN COULD ABLE TO THE GUIDE JOURNALISTS OF NEW ERA......
AVDHESH KUMAR MALLICK
REPORTER ETV