पटना। खुले बाजार में आपने गाय, भैंस, बैल, बकरी आदि बिकने की बातें जरूर सुनी होगी लेकिन आपको यह बात सुनने मे थोड़ी अजीब लगे कि बिहार और झारखंड के कई जिलों में प्रतिदिन मजदूरों का भी बाजार लगता है। इन बाजारों में मजदूरों की बोली लगाई जाती है और फिर उन्हें काम के हिसाब से खरीदा जाता है।
प्रत्येक दिन इन हट्ठे-कट्ठे एवं स्वस्थ मजदूरों की खरीद-बिक्री होती है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने तथा उनकी स्थिति में सुधार के लिए कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, परंतु इन मजदूर बाजारों में मजदूरों की कमी नहीं हो रही है।
बिहार के छपरा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, खगडि़या, डिहरी सहित झारखंड के रांची, डालटेनगंज, बोकारो, हजारीबाग आदि जिला मुख्यालयों में ऐसे बाजार लगते हैं। ये बाजार खुलेआम सुबह के आठ बजते-बजते मजदूरों से सज जाते हैं।
इन शहरों के खास स्थानों में यह बाजार लगता है। इन स्थानों पर नौ बजते-बजते मजदूरों की संख्या 250-300 के लगभग हो जाती है। फिर इन मजदूरों को खरीदने के लिए ग्राहकों के आने का सिलसिला शुरू होता है। ग्राहकों के आते ही इन मजदूरों की खरीद-फरोख्त का दौर शुरू हो जाता है।
इलाके और काम के हिसाब से इन मजदूरों की कीमत तय होती है। निपुण मजदूर तो इन बाजारों में ही मिलते हैं। छत-ढलाई व अन्य निर्माण कार्यों के लिए मिलने वाले मजदूर यहां 100-150 रुपये में बिकते हैं। सामान्य श्रेणी के मजदूरों को यहां कम भाव में खरीदा जाता है। इनकी खरीद 90-100 रुपये में की जाती है।
आश्चर्य की बात यह है कि इन बाजारों में महिला मजदूरों की भी उपस्थिति अच्छी-खासी होती है। हालांकि इन्हें पुरूष मजदूरों से कम दामों में खरीदा जाता है। इन महिला मजदूरों की कीमत शादियों के मौसम में बढ़ जाती है।
डिहरी स्टेशन चौक पर लगे मजदूर बाजार में खड़े शंकर कहते हैं कि इस बाजार में आने से काम की किल्लत नहीं रहती। यहां आने से इतना तय होता है कि काम मिल ही जाएगा। उधर, पलामू के रेड़मा चौक पर खड़ी एक महिला मजदूर जीरवा देवी कहती हैं कि यहां मोल-भाव के बाद मजदूरी तय होती है। वह कहती हैं कि इधर-उधर काम के लिए भटकने से अच्छा है कि यहां आया जाए और आसानी से काम प्राप्त किया जाए।
प्रत्येक दिन इन हट्ठे-कट्ठे एवं स्वस्थ मजदूरों की खरीद-बिक्री होती है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने तथा उनकी स्थिति में सुधार के लिए कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, परंतु इन मजदूर बाजारों में मजदूरों की कमी नहीं हो रही है।
बिहार के छपरा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, खगडि़या, डिहरी सहित झारखंड के रांची, डालटेनगंज, बोकारो, हजारीबाग आदि जिला मुख्यालयों में ऐसे बाजार लगते हैं। ये बाजार खुलेआम सुबह के आठ बजते-बजते मजदूरों से सज जाते हैं।
इन शहरों के खास स्थानों में यह बाजार लगता है। इन स्थानों पर नौ बजते-बजते मजदूरों की संख्या 250-300 के लगभग हो जाती है। फिर इन मजदूरों को खरीदने के लिए ग्राहकों के आने का सिलसिला शुरू होता है। ग्राहकों के आते ही इन मजदूरों की खरीद-फरोख्त का दौर शुरू हो जाता है।
इलाके और काम के हिसाब से इन मजदूरों की कीमत तय होती है। निपुण मजदूर तो इन बाजारों में ही मिलते हैं। छत-ढलाई व अन्य निर्माण कार्यों के लिए मिलने वाले मजदूर यहां 100-150 रुपये में बिकते हैं। सामान्य श्रेणी के मजदूरों को यहां कम भाव में खरीदा जाता है। इनकी खरीद 90-100 रुपये में की जाती है।
आश्चर्य की बात यह है कि इन बाजारों में महिला मजदूरों की भी उपस्थिति अच्छी-खासी होती है। हालांकि इन्हें पुरूष मजदूरों से कम दामों में खरीदा जाता है। इन महिला मजदूरों की कीमत शादियों के मौसम में बढ़ जाती है।
डिहरी स्टेशन चौक पर लगे मजदूर बाजार में खड़े शंकर कहते हैं कि इस बाजार में आने से काम की किल्लत नहीं रहती। यहां आने से इतना तय होता है कि काम मिल ही जाएगा। उधर, पलामू के रेड़मा चौक पर खड़ी एक महिला मजदूर जीरवा देवी कहती हैं कि यहां मोल-भाव के बाद मजदूरी तय होती है। वह कहती हैं कि इधर-उधर काम के लिए भटकने से अच्छा है कि यहां आया जाए और आसानी से काम प्राप्त किया जाए।
साभार ः याहू.कॉम, फ़ोटोः गूगल
2 comments:
ऐसे बजार शायद सभी प्रमुख शहरों में लगते हैं.
बहुत बढिया आलेख।
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