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Friday, January 11, 2008

रुपहला पर्दा न्याय नहीं करता रंगकर्म से

नई दिल्ली [वंदना गुप्ता]। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय [एनएसडी] की निदेशक अनुराधा कपूर चिंतित हैं। उनकी चिंता का मुख्य कारण यह है कि अफगानिस्तान का नाट्य दल भारत आ पाएगा या नहीं। ये कलाकार आएंगे, तो लोगों को यह समझने में मदद मिलेगी कि अफगानिस्तान के मुश्किल हालात के बावजूद कैसे रंगकर्म वहां अब भी सांस ले रहा है।
संस्कृति और रंगकर्म में जिनकी तनिक भी रुचि है, उनके लिए खबर यह है कि दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय अपने जीवन के 50 साल पूरे करने जा रहा है। वहीं उसके द्वारा आयोजित किए जाने वाले भारत रंग महोत्सव की 10वीं बारी है। इस कारण उसने इसे विशेष रूप से मनाने का फैसला किया है। इसका फोकस उसने अपने पूर्व छात्रों पर रखा है। आयोजन शुरू हो चुका है, जिसमें 18 दिनों तक देश-विदेश के नाट्यकर्मी अपनी कला की जीवंत प्रस्तुति करेंगे। इसमें 1150 कलाकार शिरकत कर रहे हैं और 77 कार्यक्रम पेश किए जाएंगे।
महोत्सव में विभिन्न राज्यों के साथ अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, स्विट्जरलैंड, पोलैंड, इंग्लैंड, नार्वे, मारीशस, चीन व जापान के कलाकार आएंगे। पाकिस्तान के दो नाटकों इमरान पीरजादा का 'अंखियांवालेओ' व शाहिद नदीम के निर्देशन में 'बुरक ावेगेंजा' का मंचन होगा। अफगानिस्तान के दो नाटकों -'क्राई आफ हिस्ट्री' और 'द काकेशियन चाक सर्किल' को भी देखने का अंवसर मिल सकता है।
इस मौके पर यह बहस लाजिमी है कि नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, मनोहर सिंह, नीना गुप्ता, पंकज कपूर जैसे नाम रंगकर्म की दुनिया को देने वाला नाट्य विद्यालय क्या अब खामोश है? ऐसे चमकदार नाम अब वहां से क्यों नहीं निकलते? अनुराधा कपूर का जवाब जहां अपनी विधा का बचाव है, वहीं खुद में सवाल भी। वह प्रश्नोत्तर शैली में जवाब देती हैं कि फिल्मों को ही रंगमंच की सफलता का मानक क्यों माना जाए, रंगकर्म फिल्मों से बड़ा है। पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर भी नाटकों के प्रति आम नजरिये को नकारते हैं। वह कहते हैं कि फिल्में नाट्य प्रतिभा के साथ न्याय नहीं करतीं और कलाकार फिर नाटकों की ओर लौटता है। उनके मुताबिक 'दस साल लगाने के बाद कलाकार को किसी एक फिल्म में छोटा रोल मिलता है। यही 10 साल अगर वह नाटकों में दे, तो तरक्की निश्चित है।' उनके अनुसार इसीलिए नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी फिर रंगकर्म में सक्रिय हैं। नसीर, नादिरा बब्बर, राजेंद्र गुप्त, रजित कपूर महोत्सव में अपने नाटक प्रस्तुत करने वाले हैं। अनुराधा कपूर कहती हैं कि लोग सिर्फ बड़े नाम देखते हैं। एनएसडी से निकले ऐसे बहुत नाम हैं, जो विभिन्न शहरों में अच्छा काम कर रहे हैं। वह नेपाल में सक्रिय अनूप बराल व सुनील पोखरियाल और बांग्लादेश के कमलुद्दीन नीलू का नाम लेती हैं। उन्हें लगता है कि महोत्सव से पिछले 50 सालों में एनएसडी की भूमिका परखने का मौका भी मिलेगा।

साभार : दैनिक जागरण Jan 11, 11:47 am

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