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Saturday, April 11, 2009

कितने हितकारी होंगे ग्राम न्यायलय

प्रीति पाण्डेय /दिल्ली
ग्राम न्यायलय बिल के द्वारा देश भर में करीब 3000 हजार ग्राम न्यायालय स्थापित करने की घोषणा हाल ही में केन्द्रीय मंत्री हंसराज भारद्वाज ने की है। क्या सच में यह बिल गांवों में सुख-शांति का बीज बो पाएगा? गांवों की न्यायिक व्यवस्था की बात चलती है तो `जिसकी लाठी, उसकी भैंस´ की कहावत अनायास ही ध्यान में आ जाती है। ऐसे में गरीब एवं पिछड़े ग्रामीणों को तो दबंगों के सामने आत्मसर्पण करना ही पड़ता है। 2007 में संसद में ग्राम न्यायलय का प्रस्ताव रखा गया, जिसे जनवरी 2009 में मंजूरी दी गईं। कानून पैसे वाले का होता है, सबके मन में पलने वाली इस धारणा पर ग्राम न्यायालय की संकल्पना क्या आशा की नई किरणा जान पड़ती है? क्या है जानकारों की राय और ग्राम न्यायलय गावों के लिए कितने हितकारी होंगे?आईये जानें...
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डॉ युधिष्ठिर शर्मा, न्यायधीश-जिला न्यायालय, गाजियाबाद
`ग्राम न्यायलय योजना´ सरकार द्वारा उठाया गया एक बहुत ही अच्छा कदम है। इससे ग्राम स्तर पर बढ़ रहे अपराधिक मामलों को यकीनन लगाम लगाया जा सकता है। गांवों के लोग अक्सर अन्याय सहते रहते हैं चूंकि उनकी नजर में न्याय का मतलब सालों-साल न्यायलय के चक्कर लगाने पर भी न्याय न मिलने से ही है। पहले गांव के कुछ पंच मिलकर पंचायत बैठाते थे जिसमें न्याय दिया जाता था लेकिन धीरे-धीरे इसका असर कम हो गया क्योंकि ग्राम पंचायतों पर से लोगों का विश्वास कम होता जा रहा था। और लोग न्यायलयों पर भरोसा करने लगे। इसलिए ग्राम न्यायलय का खुलना गांव वासियों को उनके अधिकार के प्रति न्याय दिलाने में एक यंत्र का काम कर सकता है। इससे तीन तरह के लाभ होंगे1. लोगों को उनके घर पर जाकर न्याय दिया जाएगा यानि जसटिस ऑन वील , जसटिस ऑन डोर:- ग्राम न्यायलय की योजना के अन्तर्गत इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्याय उसके द्वार पर पहुंचे और एक से दो सुनवाई मेंं ही उसे न्याय मिलें।2. इस व्यवस्था से सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें न्याय मांगने वाले व्यक्ति का खर्चा कम से कम हो। सीमित साधनों के चलते गांव के लोग आर्थिक तौर पर काफी पिछड़े होते हैं इसीलिए वह न्याय के लिए दस्तक नहीं कर पाते लेकिन ग्राम न्यायलय के द्वारा अब वह कम से कम खर्चे पर न्याय प्राप्त कर सकते हैं। यहां तक की यदि किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिती बहुत ज्यादा खराब है तो सरकार स्वयं उसे सरकारी वकील मुहैया कराएगी और उसका सारा खर्चा सरकार द्वारा ही वहन किया जाएगा।3. ग्राम न्यायलय का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण लाभ है कि इस व्यवस्था के अन्र्तगत न्याय की गति काफी तीव्र है। गांव के लोगों को न्याय मिलने में सालों नहीं लगेगे बल्कि उन्हें 6 माह के अन्दर ही यानि एक से दो सुनवाई में ही न्याय मिल जाएगा। इस प्रकार ग्राम न्यायलय एक ऐसी खुली अदालत होगी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह कितना ही गरीब क्यों न हो, वह भी न्याय मांगने के लिए जज के सामने खड़ा हो सकता है। वरना आमतौर पर व्यक्ति को अपनी बात जज तक पहुंचाने का मौका ही नहीं मिल पाता। इसलिए यकीनन इस व्यवस्था से गांव के लोगों को बहुत लाभ होगा और उनके छोटे-मोटे मामले गांव में ही सुलझ जाएंगे।

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मनीष सिसोदिया, सामाजिक कार्यकर्ता
(गैर सरकारी संस्था कबीर से सम्बद्ध)
सरकार द्वारा चलाई गई प्रत्येक योजना सफल ही हो ऐसा जरूरी नहीं है। योजनाएं तो लाखों हैं लेकिन उनमें से नाममात्र ही ऐसी होती हैं जो अपने उद्देश्य को पूरा कर पाती हैं। ग्राम न्यायलय बहुत प्रभावित होगा यह कहना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल है, हाँ ग्राम न्यायलय गांव के लिए काफी प्रभावित हो सकता है इस बात में कोई अंदेशा नहीं है बशर्ते व्यवस्था सुव्यवस्थित ढंग से की जाएं तो। गांवों के आपसी झगड़ों को गांव के अन्दर ही सुलझाना बरसों से चली आ रही परंपरा रही है। जिसमें ग्राम पंचायत के आधार पर न्याय किया जाता था। यहां तक कि अंग्रेजों ने भी भारतीय ग्राम पंचायत को भारत की रीढ़ की हड्डी कहा है। ग्राम पंचायते जिन्हें पहले सरकार द्वारा मान्यता होती थी कि वह बिना किसी का पक्ष लिए बिना ही निष्पक्ष होकर न्याय करती थी। लेकिन समय के साथ-साथ ग्राम पंचायतों की मान्यता समाप्त होती गई क्योंकि लोगों का इनपर से विश्वास ही उठ गया था। लेकिन सरकार ने ग्राम न्यायलय को भी ग्राम पंचायत के आधार पर ही बनाया है। मेरा मानना है कि एक या दो व्यक्ति को न्यायलय की बागडोर देने से न्यायलय असल में न्याय ही देगा यह कहना थोड़ा मुश्किल है। उस व्यवस्था में जब तक समाज की भागीदारी नहीं और पारदर्शिता नहीं होगी तब तक लोगों को शुद्ध न्याय नहीं मिल सकता । भारी पक्ष से कमजोर पक्ष को दबना ही पडेगा। ग्राम न्यायलय में भागीदार जज और वकील अन्य वकील और जज की तरह रिश्वत नहीं लेते हों इसकी क्या गारंटी? आए-दिन घूसखोरी के मामले सामने आते हैं जिन्हें देखते हुए किस पर भरोसा किया जाए और किस पर नहीं यह कहना थोड़ा मुश्किल है। इसलिए जहां तक मैं समझता हूं ग्राम न्यायलय में ग्राम सभा को ही यह अधिकार दिया जाए कि वह अपने पूरे गांव में से किसी पढ़े-लिखे और समझदार व्यक्ति जिस पर पूरा गांव भरोसा करता हो, उसे ही अपना जज चुनें और ग्राम न्यायलय के द्वारा उस चुने गए जज और पूरे गांव की सहमती के आधार पर ही फैसला हो। यह एक खुला न्यायलय होना चाहिए जहां पूरे जन-समुदाय के सामने मुद्दा रखा जाए और लोगों की राय भी जाननी जाए की उनकी नजर में कौन गलत और कौन सही है। जिस प्रकार भारत जैसे लोकतंत्र देश में जनता से, जनता द्वारा और जनता के लिए नेता को चुना जाता है। उसी प्रकार गांव से गांव द्वारा और गांव के लिए- के आधार पर न्याय किया जाए तो ज्यादा बेहतर रहेगा। एक व्यक्ति को पावर देना गलत है। अपने गांव को और अपने गांव की समस्याओं को जितने अच्छे तरीके से गांव का व्यक्ति सुलझा सकता है, उतना बाहर से आए या सरकार द्वारा भेजे गए जज नहीं।


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शांति भूषण वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय
ग्राम न्यायलय एक बहुत ही अच्छी योजना है जो यकीनन सफल होगी। यह सरकार द्वारा उठाया गया एक प्रशंसनीय कार्य है जिसका परिणाम बहुत प्रभावशाली होगा और गांव में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को राहत पहुंचाएगा। जहां पहले गांव वाले अपने अधिकारों और अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने से डरते थे वहीं वह अब स्वयं न्यायधीश के सामने अपनी बात रख सकते हैं। जहां कोई उनके बीच में बात काटने वाला नहीं होगा। दोनों पक्षों को अपनी-अपनी बात न्यायधीश के सामने रखने का पूरा-पूरा समय मिलेगा। न्यायधीश भी दोनों पक्षों के प्रत्येक पहलू पर नजर रखते हुए ही और सच्चाई की जड़ तक पहुंचने के बाद ही न्याय करेगा। इस व्यवस्था में वकील का कोई रोल नहीं होगा यहां न्याय देने वाला और न्याय मांगने वाले की डारेक्ट बात होगी। यह ऐसा मोबाइल कोर्ट होगा जिसमें पूरा जन-समुदाय मौजूद होगा और खुले मंच के तौर पर न्याय दिया जाएगा। मेरा मानना है प्रत्येक योजना तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक वहां का नागरिक उस योजना का सफल न बनाएं। ग्राम न्यायलय से आने वाले समय में गांव काफी हद तक अपराध मुक्त हो जाएंगे। क्योंकि जहां न्याय की गति इतनी तेज होगी वहां अपराध कैसे ठहर सकता है। अपनी बात को खत्म करते हुए मैं यही कहुंगा कि ग्राम न्यायलय के आने से गांवों का बहुत जल्दी विकास होगा चूंकि जहां की न्यायिक व्यवस्था ठीक होती है वहां विकास का होना तय है।


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रामबहादुर रायसंपादक-प्रथम प्रवक्ता
ग्राम न्यायलय का बिल पास हुआ है यह एक अच्छी बात है बशतेZ इसे पास करने के पीछे अच्छी मंशा भी हो। यह फैसला सही दिशा में हो तो यकीनन इसका परिणाम सकारात्मक ही होगा लेकिन सरकार की परिक्षा तो तब होगी जब चुनाव हो चुके होंगे। तब असली काम नजर आता है। जहां तक मुझे लगता है अभी तक जहां भी न्याय की बात होती है वहां न्याय के नाम पर निर्णय किए जाते हैं इसलिए किसी जगह के लिए न्यायलय व्यवस्था देने से ज्यादा जरूरी है न्याय प्रणाली में सुधार! इन बिलों को पास करके प्रत्येक सरकार यह साबित करना चाहती है कि वह कितनी गरीबप्रस्त है फिर भले ही उनके चुनावी घोषणा पत्र में गरीब का जिक्र तक न किया गया हो। जो गरीब भूखे पेट सो रहा है उसे कोई क्या न्याय की जरूरत है उसके लिए तो पहला न्याय उसके पेट को भरना है। गरीब अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाए यही उसका पहला न्याय है, बाकी तो बाद की बातें हैं। ग्राम न्यायलय पूरी तरह ग्राम पंचायत के आधार पर हों जिनमें गांव की बात गंाव में ही खत्म हों और जिसमें कोई मुकदमेंबाजी न हो। चूंकि जहां सरकार जुड़ती है वहां अनेक औपचारिकताएं होती है जिन्हें पूरा करने के लिए अक्सर रिश्वत के देवताओं को चढ़ावा चढ़ाना होता है। इसलिए ग्राम न्यायलय में किसी जज और वकील के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए तभी न्याय के लिए रिश्वत का चलन समाप्त हो पाएगा। योजना अच्छी है लेकिन इसका सकारात्मक असर तभी होगा जब इसे अच्छे ढंग से चलाया जाए। (साभार :सोपान स्टेप)

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ग्राम न्यायालय की अवधारणा बहुत ही अच्छी है। यह लागू की जा रही है। इस से अवश्य ही न्याय को बल मिलेगा। लेकिन वर्तमान न्यायालयों की संख्या तेजी से बढ़ा कर 50 प्रतिलाख आबादी तक लानी होगी, अन्यथा न्याय व्यवस्था के ढाँचे को गिरने से नहीं रोका जा सकेगा।