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Friday, February 27, 2009

आंचलिक पत्राकारिता की ताकत : खबर लहरिया

डॉ स्मिता मिश्र
किसी देश के समग्र विकास में जनसंचार माध्यमों की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत के सन्दर्भ में ये माध्यम और अधिक महत्वपूर्ण हो उठते है। हमारी दो-तिहाई मानवीय पूंजी ग्रामीण भारत से ही सम्बद्ध है, जो कि आज भी ज्ञान तथा सूचना से वंचित है। विडम्बना यह है कि सरकार उनके लिये जितनी योजनाएं तथा नीतियां बनाती हैं उनकी जानकारी उन तक ही नहीं पहुंच पाती। यदि पहुंचती भी है तो आधी अधूरी। गाँव में संचार-रिक्तता की स्थिति हैं। इसी प्रकार कृषि अनुसंधनों या योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रतिपुष्टि भी यहां से नहीं जा पाती। होता यह है कि प्रतिपुष्टि के अभाव में महानगर में बैठे नीति-नियामकों को उसकी जानकारी नहीं मिल पाती और विकास प्रक्रिया की पूरी कवायद की सार्थकता पर प्रश्नचिंह लग जाता है। इस संचार रिक्तता को आंचलिक पत्राकारिता ही दूर कर सकती है। क्योंकि अंचलों से निकलने वाली पत्र-पत्रिकाएँ समाचार-पत्र उस क्षेत्र-विशेष की भाषा और जरूरत को समझते हैं तथा स्थानीय लोग भी ऐसे माध्यमों से जुड़ाव महसूस करते हैं।आज बड़े-बड़े नामों वाली बहुत चमक-ध्मक और ग्लैमर वाली पत्राकारिता का जोर है। ऐसे में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे चित्राकूट जनपद के कर्वी गाँव से निकलने वाले अखबार `खबर-लहरिया´ की उपस्थिति आश्चर्य के रूप में सामने आती है। प्रतििष्ठत `चमेली देवी´ पुरस्कार से सम्मानित इस अखबार को जनपद की नौ नवसाक्षर महिलाओं ने लगभग चार साल पहले शुरू किया। हालांकि इससे जुड़ी महिलाओं के पास पत्राकारिता की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है। यह अखबार महिला सशक्तीकरण का अद्भुत उदाहरण है। ऐसा सशक्तीकरण जो सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत नहीं हुआ है बल्कि गाँव की पिछड़ी और दलित महिलाओं ने `निरन्तर´ ट्रस्ट द्वारा प्रेरित किये जाने पर अपने कंधें पर यह दायित्व लिया और उसे बखूबी पूरा कर रही हैं।आज बाजार, राजनीति, अपराध्, सिनेमा और क्रिकेट के ग्लैमर को ही तवज्जो देना पत्राकारिता का मुख्य लक्ष्य हो गया है। ऐसे में आम आदमी खासतौर पर गाँव या पिछड़े इलाके में रह रहे आदमी के विकास का मुद्दा पीछे छूटा जा रहा है। ऐसे समय में `खबर लहरिया´ जैसे आंचलिक समाचार-पत्रा आशा की किरण के रूप में सामने आते हैं। बुंदेली भाषा में प्रकाशित इस समाचार-पत्रा की संपादिका मीरा देवी संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि प्रारम्भ में संवाददाताओं (मिथिलेश, दुर्गा, सोनिया, शकीला, मीरा, कविता, शांति, मंजूद्ध को कोई भी सूचना या समाचार हासिल करने में बहुत समस्या आती थी। महिला होने के कारण लोग गम्भीरता से नहीं लेते थे। सरकारी महकमों के लोग परेशान करते थे। पिफर भी वे हिम्मत न हारते हुए जनपद की समस्याओं विकास की बाधओं और महिला मुद्दों को बहुत बेबाकी से प्रस्तुत करते रहीं जिसके पफलस्वरूप प्रतििष्ठत `चमेली देवी´ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। शाहिर सी बात है कि स्थानीय लोगों की आवाज उन्हीं की भाषा में जब इस अखबार ने उठाई तो वह अपनी सामान्यता में ही असामान्य हो गया। इतने कम समय में इस आठ पृष्ठीय अखबार ने कई उपलिब्ध्यां हासिल की। जैसे इस अखबार की संवाददाता मिथिलेश को हन्ना गाँव की सड़क बनवाने का श्रेय जाता है। हन्ना गाँव में सड़क कापफी पहले बन गई थी, लेकिन सिर्पफ सरकारी कागजों पर। मिथिलेश ने जब सारी छानबीन कर इसकी रिपोर्ट `खबर लहरिया´ में छापी तो जिला मैजिस्ट्रेट ने सारी जाँच कराई और कागजी सड़क को हकीकत में बदल दिया। इसी प्रकार सूचना के अिध्कार से ग्रामीणों के जीवन में सम्भावित परिवर्तनों को भी मीरा देवी ने अपने सम्पादकीय में लक्षित किया। तमाम सरकारी योजनाओं की घोषणा की खबरें समय-समय पर इस अखबार में छपती रहती है। और इन सूचनाओं को ही ताकत बनाकर गाँव का आदमी अपने हक की लड़ाई लड़ने लगा है। जैसे मुख्यमंत्राी योजना में गरीब राशनकार्डधरियों का सरकारी अस्पताल में मुफ्रत इलाज का प्रावधन रखा गया। जब यह सूचना अख़्ाबार ने छापी तो अनेक ग्रामीण राशनकार्ड लेकर अस्पताल में पहुंचे। डॉक्टरों ने कहा कि ऐसी कोई योजना नहीं है तो ग्रामीणों ने झट से कहा कि योजना है, हमने `खबर लहरिया´ में पढ़ा है।अखबार से जुड़ी सभी महिलाएं रोजाना अपने घरेलू काम-काज निपटाने के बाद सूचना एकत्राीकरण पर निकलती है। महीने में दो बार पूरे समूह की सभा होती है। जिसमें एकत्रा सूचनाओं की छंटनी होती है। पृष्ठों के आधर पर समाचार तय किये जाते हैं। पिफर समाचार-पत्रा का खाका बनता है। प्रथम पृष्ठ पर चित्राकूट या प्रदेश से सम्बंिध्त किसी महत्वपूर्ण समाचार को स्थान दिया जाता है। दूसरे पृष्ठ पर `देश-विदेश´ शीर्षक के अन्तर्गत देश-दुनिया की महत्वपूर्ण हलचलों पर भी नशर रखी जाती है। तीसरे पृष्ठ `विकास´ पर गाँव के विकास सम्बन्ध्ी मुद्दों को स्थान दिया जाता है। `महिला मुद्दा´ पृष्ठ पर महिलाओं की समस्याओं उनकी पीड़ा को अभिव्यक्ति दी जाती है। `पंचायत´ पृष्ठ पर सरकारी योजनाओं/नीतियों की सूचना, उनके क्रियान्वयन में की जा रही घपलेबाजी को उजागर किया जाता है। अंतिम पृष्ठ पर `सम्पादकीय´ तथा `पाठकों के पत्रा´ छापे जाते हैं।इस अखबार की संवाददाताओं को प्रशिक्षण देने के लिये समय-समय पर आयोजित कार्यशालाओं में भेजा जाता है। साथ ही इनकी राजनीतिक समझ विकसित करने के लिये `निरन्तर´ एन।जी.ओ., दिल्ली से विशेषज्ञ आते हैं। साथ ही राजनीतिक समाचारों द्वारा भी ये महिलाएं अपनी राजनीतिक समझ विकसित करती हैं। अखबार की बढ़ती लोकप्रियता के चलते सम्पादिका मीरा देवी इसका विस्तार करने की इच्छुक हैं। बांदा जिले से भी इसके प्रकाशन की योजना बन रही है। साथ ही इसे पाक्षिक से साप्ताहिक करने की भी योजना है ताकि अिध्क से अिध्क क्षेत्रा और अिध्क से अिध्क समाचारों को समाहित किया जा सकें।जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि आज की पत्राकारिता केवल अपराध् की सनसनीखेज पत्राकारिता बन कर रह गई है। बड़े अखबार सनसनी पैफलाने के ही काम में लगे हुए हैं। आदमी को आदमी से जोड़ने वाली खबरों की आजकल बेहद कमी है। इन आंचलिक अखबारों में ये ताकत है कि वे छूटी हुई खबरों को खबर बना सकते हैं क्योंकि आज का पाठक कूट घटनाओं का समाचार पढ़ देख कर ऊब गया है। खबर लहरिया में अक्सर आंचलिक प्रतिभाओं का `बातचीत´ कॉलम में इंटरव्यू लिया जाता है। जैसे जून 2006 अंक में बांदा जिले के बड़ोखर गाँव के जादूगर बुद्ध विलास से बातचीत की गयी। सम्पादकीय टिप्पणी में भी जिस तरह बेबाक शैली का प्रयोग किया जाता है वह शैली बड़े-बड़े अखबारों में द्रष्टव्य नहीं होती है। जैसे खबर लहरिया समूह कइती से सबहिन का नमस्ते। सरकार किसानन के विकास का िढंढोरा पीटत हवै अउर दूसर कइत किसानन के पेट मा लात मारत हवै। चित्राकूट जिला की ज्यादातर नहर सुखान परी हवै। ...सरकार आपन बड़ाई करत हवै। कहते हवै फ्या साल पूर देश मा बहुतै नीक पफसल भे हवै। यहै कारन सबै किसान खुशी हवै।य् इ बात मुलायम सिंह यादव कुरसी मा बइठे बइठे कहते हवै। का कतौ सरकार किसानन से उनके खुशी के बात पूछत हवै?इसी तरह `सूचना का अिध्कार´ कानून लागू होने पर प्रथम पृष्ठ का शीर्षक था µ `आ गा सूचना का अिध्कार´ अब मड़ई सरकारी आपिफस, सरकारी अस्पताल, ब्लॉक, पंचायत, पुलिस चौकी अउर दूसर सरकारी विभागन से सूचना लइ सकत हवैं। अब सरकारी अिध्कारी सूचना दे मा आनाकानी न करिहैं। काहे से सूचना न दे मा उनका जुर्माना दे का पड़ी।अखबार के नाम पर विचार करें तो पायेंगे कि `खबर लहरिया´ नाम द्योतक है समाचारों के अनवरत प्रवाह का। लहरिया कह देने से बुंदेलखंड की आंचलिक महक भर जाती है। एक ऐसा नाम जिसमें विज्ञापनों की भ्रामक दुनिया नहीं है, पेज-थ्री का ग्लैमर नहीं, एक दूसरे से मच रही अखबारों की गला काट प्रतियोगिता नहीं। जिसमें है तो हाशिये पर खड़े इंसान की आवाश, जिसमें है सदियों से दबी औरत की अभिव्यक्ति। इसलिये `खबर लहरिया´ नाम लेते ही अपने आसपास सुख-दु:ख बाँटने वाला कोई आत्मीय साथी ध्यान में आ जाता है। यही इसकी पहचान भी है और यही इसकी सार्थकता भी।
(डॉ स्मिता मिश्र दिल्ली विश्विद्यालय में व्याख्याता के तौर पर कार्यरत हैं और मीडिया और इससे जुड़े विषयों से से सीधा सरोकार रखती हैं। पत्रकारों की कई पीढियों को कलम पकड़ने की सीख दे चुकी स्मिता मिश्र की मिडिया पर कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में भारतेंदु हरिश्चद्र पुरस्कार से आपको नवाजा गया है। देश भर में भ्रमण कर ख़बर लहरिया जैसे ढेरों अनुभव बटोरे हैं स्मिता जी ने।)

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