मेरा गाँव मेरा देश

Tuesday, December 9, 2008

'आह' से उपजा होगा गान

मल्लिका साराभाई
सभी का कोई न कोई आदर्श होता है। फिल्म स्टार, राजनीतिज्ञ, संगीत क्षेत्र के सितारे या फिर सामाजिक कार्यकर्ता इत्यादि। हम उनके जैसा बनने का प्रयास करते हैं। मेरे भी आदर्श हैं, लेकिन ऊपर दिए गए लोगों की श्रेणी में वे कहीं भी नहीं आते और यह मेरा नसीब है कि इनमें से दो हीरो से हाल ही में मेरी मुलाकात हुई। भंवरीदेवी उम्र से ज्यादा वृद्ध दिखती हैं। पूरे देश का ध्यान उनकी ओर खिंचा था, जब यह दुर्घटना उनके साथ घटी थी। आज वे 70 साल की वृद्धा जैसी दिखती हैं। उनके चेहरे पर झुर्रियां साफ झलकती हैं। उनके हाथ यह दर्शाते हैं कि भूतकाल में उन्होंने कैसा कठिन जीवन व्यतीत किया होगा लेकिन उनकी आंखों में अब भी चमक है। आज से करीब 15 साल पहले वे ‘साथिन’ के तौर पर राजस्थान सरकार की नौकरी करती थीं। उनके मातहत आने वाले गांवों में वे महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में मददगार बनती थीं। एक बार वे किसी गांव का दौरा करने पहुंचीं तो देखा कि वहां बाल विवाह किया जा रहा था। उनसे यह देखा न गया और उन्होंने विवाहस्थल पर जाकर कहा कि बाल विवाह गैरकानूनी है। उन्होंने दोनों परिवारों को बाल विवाह न करने के लिए समझाया। उच्च जाति के लोगों को यह अपमानजनक लगा और उन्होंने भंवरीदेवी को सजा देने की ठान ली। कुछ दिनों के बाद उनके पति के सामने ही उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। अपने शरीर पर जख्मों के साथ भंवरीदेवी पुलिस थाने पहुंची। पुलिस ने फरियाद दर्ज करने में काफी इंतजार करवाया। प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस ने अच्छी तरह जांच कर ली कि बलात्कारियों का किसी राजकीय नेता से तो नाता नहीं है? एक एनजीओ और देशभर के महिला संगठनों की मदद से भंवरीदेवी ने केस लड़ा। निचली अदालत ने तो उच्च जाति के लोग निम्न जाति की महिला के साथ बलात्कार ही नहीं कर सकते, ऐसा फैसला सुनाया। मामले को उससे बड़ी अदालत में ले जाया गया। लेकिन भंवरीदेवी को सरकारी फर्ज अदा करते समय उन पर किए गए अत्याचार के लिए कहीं से भी न्याय नहीं मिला। उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी और महिलाओं तथा बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ना जारी रखा। मुख्तारन माई पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके में रहने वाली आदिवासी मुस्लिम महिला है।
अनपढ़ और बुर्के में रहने वाली मुख्तारन माई बाहर की दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी। मुख्तारन माई के विरोधी कबीले के लोगों ने उसके 12 वर्षीय नाबालिग भाई पर अपने कबीले की एक युवती से प्यार का आरोप लगाकर पंचायत बुलाई। पंचायत में पूर्व नियोजित योजना के अनुसार दंड तय कर दिया गया। इस फैसले को बदलने के लिए मुख्तारन माई ने पंचायत के सामने न्याय की भीख भी मांगी, लेकिन उसे सिरे से नकार दिया गया और उसकी अस्मत लूट लेने की इजाजत अपने कबीले के लोगों को दे दी। दो पुरुष उसे जिस तंबू में ले गए, वहां 20 से ज्यादा आदिवासी पुरुष उसकी बाट जोहे बैठे थे। उसके पिता और चाचा के सामने ही चार लोगों ने मुख्तारन के हाथ और पैर पकड़ लिए और बाकी के लोग बारी-बारी से उसके साथ दुष्कर्म करते गए। उसके शरीर के साथ-साथ कपड़ों के भी चीथड़े हो गए। उसी हालत में उसे 10 किमी पैदल चलकर अपने गांव तक जाना पड़ा। तब उसके मन पर क्या बीती होगी? कितने दिनों तक वह आत्महत्या करने के बारे में ही सोचती रही। उसकी माता इस बात का खास ध्यान रखती थी कि कहीं वह जहर न खा ले। निराशा और चुप्पी के करीब एक माह बाद 12 साल की अनपढ़ और बदला लेने की इच्छा रखने वाली इस किशोरी ने तय किया कि वह अमीर और राजकीय पैठ रखने वाले लोगों के खिलाफ लड़ेगी। मुख्तारन के घर और गांव के लोगों ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन लड़ने के लिए मदद और हिम्मत उसकी मां ने उसे दी। वे नजदीक के बड़े शहर में गए और फरियाद लिखाने के लिए पुलिस थाने पहुंचे। संयोग से एक पत्रकार वहां मौजूद था, जिसने मुख्तारन की बात सुनी और मुख्तारन की दु:खभरी दास्तान पूरे विश्व में फैल गई। केस का फैसला जल्द से जल्द आ जाए इसके लिए तेजी से कार्रवाई की गई और बलात्कारियों को पांच लाख का दंड और जेल की सजा सुनाई गई। एक शर्मिली बाला अचानक ही सेलीब्रिटी बन गई। उसके परिवार को और उसे लोगों ने जान से मार देने का भी प्रयास किया, उसका घर जला दिया गया। उसने अपने इलाके में बच्चियों के लिए अलग से स्कूल खोला, जिससे भविष्य में कोई भी बच्ची उसकी तरह लाचार न रहे। मुख्तारन माई को कई सम्मानों से नवाजा गया। आज वह बच्चियों ही नहीं, समग्र आदिवासी इलाकों के लिए ज्यादा से ज्यादा स्कूल खोलने के लिए पैसे इकट्ठा कर रही है। विश्वभर से उसे मदद मिल रही है। मैं जब मुख्तारन माई से मिली तो उसका चेहरा एकदम शांत नजर आ रहा था। मैंने जब उसे कहा कि वह मेरे लिए आदर्श है, तो आश्चर्य से वह मेरी ओर देखती रही। हमने ढेर सारी बातें कीं। मैंने उसके साथ हाथ मिलाया और फिर वहां से चल दी। खुशामदियों और मनोरोगियों की इस दुनिया में दृढ़-निश्चय और साहस दिखाने वाली ये दो महिलाएं हमारे लिए आदर्श होना चाहिए।
(लेखिका प्रतिष्ठित अभिनेत्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

3 comments:

Unknown said...

bahut achha hai

दीपक said...

उमाशंकर जी आपको विस्फ़ोट पर तो पढते ही रहते है आज उजास पे पढ लिया और पढ कर सचमुच अच्छा लगा !!

अब आपको पढते ही रहेंगे !गांव हमे भी अतिशय प्रिय है !

दीपक said...

उमाशंकर जी आपको विस्फ़ोट पर तो पढते ही रहते है आज उजास पे पढ लिया और पढ कर सचमुच अच्छा लगा !!

अब आपको पढते ही रहेंगे !गांव हमे भी अतिशय प्रिय है !