मेरा गाँव मेरा देश

Monday, March 31, 2008

दिनांक - १६ मार्च २००८
इंसान इंसानियत, आम आदमी और गुजरात

पकडो पकडो, मारो साले को, छोड़ना मत .... धम्म धम्म !!! अभी पौ फटे हुए ज्यादा देर न हुई थी और ट्रेन अहमदाबाद रेलवे स्टेशन के पर पहुँच चुकी थी, मगर पुरी तरह से रुकी नही थी। मैं पहली बार गुजरात जा रहा था, दंगों के बाद और फ़िर चुनाव के दौरान भी बहुत कुछ गुजरात के बारे में सुनने को मिला था। सोच रहा था कि अब शायद गुजरात को करीब से समझने का, परखने का मौका मिलेगा। मैंने अपना सामान उठाया और उतरने की तैयारी करने लगा। इसी बीच प्लेटफार्म से आने वाली किसी हो-हल्ले की आवाजें सवेरे के शांत वातावरण को नष्ट करने लगी थी। ऐसा लगा जैसे कोई बदमाश किसी से कुछ छीन कर भाग रहा हो। उत्सुकतावश मैं खिड़की से झांक कर स्थिति को समझने की कोशिश करने लगा। लेकिन इतनी देर में ही काफ़ी भीड़ आसपास एकत्र हो चुकी थी इसलिए परिस्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही थी कि शोर आने का कारण आख़िर क्या है! इतने में घिसड्ती हुई ट्रेन प्लेटफार्म पर रुक गई, मैं डिब्बे के दरवाजे पर पहुँच चुका था, जिससे कि गाड़ी रुकते ही, शीघ्रता से उतर सकूं और स्थिति का पता लगाया जा सके। गाड़ी से उतरने पर मैंने देखा कि कुछ लोग दो लड़कों को पकड़ कर उन पर लात घूंसों की बारिश कर रहे थे। जैसा की भीड़ का स्वभाव है, आव देखा ना ताव; कुछ औए लोगों ने भी इसी बीच उन पहले से पिट रहे लड़कों पर हाथ साफ कर लिया। लेकिन सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ था। दोनों लडके काँप रहे थे। मार कुटाई की विभीषिका को देखने के बीच कुछ क्षणों के लिए यह समझने की सुध न रही की आखिर यह हो क्या रहा है। भगदड़ का भी भय था, इसलिए मैं भीड़ से थोड़ा दूर ही खड़ा होने के लिए स्थान तलाश रहा था। इस दौरान कुली जो सवारियों की ओर टकटकी लगाये देख रहे थे, इस कोलाहल को सुन कर एकत्र होने लगा थे। कुछेक कुलियों ने बीच बचाव की औपचारिक कोशिश की, लेकिन पिटाई करने वालों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था और वे निरंतर उस लड़के को पीटते जा रहे थे। उन लड़कों को मरने से रोकने के लिए जो लोग बिच बचाव में लगे हुए थे उन्हें एक बिलखती हुयी नव-ब्याहता कह रही थी - 'मत छोडिये इसे, आप लोग इसे क्यों बचा रहें हैं; आप जानते हैं इसने क्या किया है? इतने में उस महिला ने उन लड़कों में से एक को बाल पकड़ कर खींच और चप्पल से पीटने लगी, उसका रुदन भी साथ में जारी था। 'बुक पढ़ोगे, बुक दीजिये ना; बुक मांग रहा था, दिल्ली से लेकर यंहा तक ये लोग १५ -१६ का ग्रुप बनाकर चल रहे थे। पूरे रास्ता इसने हमे परेशां किया है। क्या सोच रहा था की रैकेट बनाकर चल रहा है तो किसी को कुछ भी करेगा।' इतने में कुछ और भी आवाजें आने लगी-'अरे मार डालोगे क्या बस करो छोड़ दो, पुलिस को बुला लाओ। यह आवाज एक कुली की थी। गठीले बदन वाले उस कुली की बात जब किसी ने नहीं सुनी तो वह जोर से दहाडा, अब किसी ने हाथ उठाया तो अच्छा नहीं होगा। मार डालोगे क्या इसकी, जो भी गलती हो इसकी पुलिस को बताओ और उनके हवाले कर दो। मामला संगीन होता जा रहा था, महिला एक बार फ़िर चिल्लाई मत बचाइए इसे। और कुछ उत्साहित लोगों ने दो चार और जड़ दिए। इतने पर ही उस कुली ने मारने वालों का हाथ पकड़ लिया, यही इंसानियत है तुम्हारी! कुली ने जोर से चीखते हुए कहा। प्लेटफार्म पर मौजूद अन्य कुली भी एकत्रित हो गए और अपने साथी की बात के समर्थन में आ खड़े हुए। अब किसी की हिम्मत न थी कि उन लड़कों पर दुबारा हाथ उठा सके। उस कुली ने एक बार फ़िर जोर से कहा ''क्यों मार रहे हो इसे, मर जाएगा...बिहार बनाओगे क्या यहाँ भी।'' स्टेशन पर उतरते ही यह मेरा गुजरात की धरती और स्थानीय लोगों के विचारों से पहला साक्षात्कार था। इतने में ही महिला के परिजनों से पूछने पर पता चला कि इन १५-१६ लड़कों के समूह में से कोई रात को महिला कि बर्थ पर आकर सो गया था। मामला निश्चित तौर पर पेचीदा था। इतने पर भी कुली इंसानियत कि दुहाई देते हुए कह रहा था इसे मरने की बजाय पुलिस को दे दीजिये वही फ़ैसला करेंगे। यहाँ पर कुछ बातें सामने आती हैं जो सोचने को मजबूर कर देती हैं। पहला तो यह सही है की गुनाहगार ने जुर्म किया है। lekin उसे सजा देने का काम kanoon का है ना की mujrim को sareaam kroortapoorvak piit कर मार डालना।
kramsh:

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