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Friday, January 11, 2008

आधा सफर भी तय नहीं कर पाया सिंचाई क्षेत्र

नई दिल्ली [रामनारायण श्रीवास्तव]। 'उत्तम खेती मध्यम व्यापार' की लोकोक्ति अब केवल इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गई है। देश के किसान व खेती जिस दौर से गुजर रही है, उसके लिए काफी हद तक सिंचाई सुविधाओं की कमी ही जिम्मेदार है। इन हालात को सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने पिछली दस योजनाओं में ढेरों परियोजनाओं व कार्यक्रमों को शुरू तो किया, लेकिन उनकी धीमी गति और राज्य सरकारों की उदासीनता से सफलता परवान नहीं चढ़ सकी। महत्वाकांक्षी त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम ने अब थोड़ी गति पकड़ी भी तो बाकी योजनाएं धीमी पड़ गई हैं।
एक दशक बीत जाने के बाद भी एआईबीपी से देश को वह लाभ नहीं मिल सका है, जिसकी उसने अपेक्षा की थी। इस कार्यक्रम के तहत अब तक बड़ी व मझोली परियोजनाओं पर दो खरब 32 अरब 31 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन इससे 93 लाख हेक्टेयर जमीन के लिए ही सिंचाई सुविधाएं हासिल की जा सकी हैं। इसके अलावा माइनर योजनाओं से ढाई लाख हेक्टेयर के लिए सिंचाई सुविधाएं हासिल की गई हैं। इस छोटे आंकड़े को भी जल संसाधन बड़ी उपलब्धि मानता है, क्योंकि एआईबीपी से पहले सिंचाई योजनाओं के पूरा होने व सिंचाई क्षमता सृजित होने की गति और भी धीमी थी। हालांकि मंत्रालय यह बात स्वीकारता है कि जिस गति से सिंचाई योजनाओं को पूरा होना चाहिए, वह अभी भी नहीं हो पा रहा हैं। गौरतलब है कि एआईबीपी के तहत अभी भी लगभग डेढ़ सौ परियोजनाएं लंबित हैं। यही वजह है कि देश की आधी से भी अधिक खेती अभी भी सिंचाई सुविधाओं से वंचित है।
एआईबीपी से सिंचाई क्षेत्र को गति मिली है। लेकिन इसके तहत चुनिंदा योजनाओं को ही शामिल करने से बाकी योजनाओं की गति बेहद धीमी हो जाती है। मसलन दसवीं योजना में देश भर में 14 लाख 28 हजार हेक्टेयर सिंचाई सुविधाएं सृजित की गईं उनमें एआईबीपी का योगदान नौ लाख हेक्टेयर यानी 63 फीसदी रहा। केंद्र में संप्रग सरकार आने के बाद सिंचाई क्षेत्र के लिए बजट में बढ़ोतरी होने से जल संसाधन मंत्रालय को भरोसा है कि 11वीं योजना में हालात सुधरेंगे।
हाल में ही केंद्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री जयप्रकाश नारायण यादव ने इस कार्यक्रम की समीक्षा बैठक में राज्यों को तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि केंद्र के पास पैसे की कमी नहीं है, लेकिन राज्य पहले दिए गए पैसे का उपयोगिता प्रमाणपत्र समय पर नहीं देते हैं, जिससे अगली किस्त लटक जाती है। चूंकि जल राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार धन की व्यवस्था करने से लेकर राज्यों को सलाह देने की भूमिका तक ही सीमित है। उनके काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।

साभार : दैनिक जागरण Jan 11, 02:28 am

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